कुछ लेखक कुछ बातें ऐसी लिख जाते हैं, जो काल और भूगोल से परें होती हैं। ऐसी कहावतें हमेशा फिट बैठती हैं, और कही भी फिट बैठ जाती हैं। जैसे जॉर्ज ऑरवेल ने अपनी पुस्तक एनिमल फार्म में यह रूपक लिखा था की
"सारे पशु समान हैं, मगर कुछ पशु आपस में ज्यादा समान हैं"
ऑरवेल का यह कटाक्ष १९५६ में सोवियत रूस के स्टालिन और Communist Utopia पर मारा गया था। लेकिन आज के तारिक में यह कटाक्ष दुनिया के किसी भी देश में कैसी भी परिस्थितियों पर उतना ही फिट बैठेगा।
मगर कुछ लेखकों के शब्द कालांतर में, मानवजाति के विकास के साथ contemporarily relavant नहीं भी होते हैं।
जैसे,
"नाम में क्या रखा हैं?"
जो शेक्सपीयर ने कहा था।
शेक्सपीयर ने ऐसा कब लिखा था?
सोलहवीं शताब्दी में।
कहां लिखा था?
इंग्लैंड में।
लेकिन आज हम इक्कीसवीं शताब्दी में जी रहें हैं। और यहां नाम से काम बनता और बिगड़ता हैं। नाम सिर्फ एक दूसरे को संबोधित करने का माध्यम नहीं रहा। नाम सिर्फ एक संज्ञा नही रही हमारे जीवन में; वह अब क्रिया और विशेषण भी हो चुकी हैं।
न्यूटन का प्रतिकिया वाला तीसरा सिद्धांत, नाम के इसी क्रिया रूप से संचालित होता हैं। जैसा नाम वैसी प्रतिक्रिया।
और
नाम के विशेषणों की वजह से ही आप के काम का विश्लेषण संभव हो पाता हैं।
अगर नाम नही हैं तो आप गुमनाम हो। मतलब आपके नाम में कुछ भी नही रखा।
नाम बदनाम ना हो, उसके लिए छवि बचा कर रखना जरूरी हैं। आपका विस्तार हो उसके लिए नाम का प्रचार भी जरूरी हैं। लोग आपके नाम को याद रखे उसके लिए आपके नाम से जुड़ी कथाएं होना भी जरूरी हैं।
और अगर आपको फैंटम की तरह cult status चाहिए तो आपकी कथाएं दंत कथा के फॉर्मेट में लिखी जानी चाहिए।
अगर आपका नाम, नाम न होकर एक रहस्य हो जाएं तो आपके असली नाम को फैंटम होने से कोई नहीं रोक सकता।
फैंटम क्या होता है?
जो हो भी और नही भी,
वही फैंटम हैं।
काम से नाम,
किसी बात से बदनाम,
चूंकि नाम ही हैं पहचान,
कर्ता गुमनाम
और पहचान रहस्य,
वही फैंटम हैं!
कहने को, आज की तारिक में हम information age में जी रहे हैं। लेकिन हम मिसिनफोर्मेशन के दौर से भी गुजर रहे हैं। सनसनीखेज खबर आग की तरह वायरल होती हैं, मगर misinformation भूत, भविष्य और वर्तमान को एक साथ संक्रमित करती हैं।
टाइम ट्रैवल इस फॉर्मेट में अब संभव हैं।
जब आपका नाम ही रहस्य हो, तो नाम की चर्चा में फेनोमेनली एक्सपोनेंशियल ग्रोथ होता हैं। आपके नाम की दंत कथाएं information technology के चमत्कार से information और misinformation का घोल बनकर देश विदेश फैलने लगती हैं।***
नाम का चर्चा संजीवनी होती हैं, उस दूसरे मानव के लिए जिसको अपने नाम की छवि बचाने के लिए अपने ऊपर हो रही चर्चा भटकानी होती हैं।
फ़्रीवास्तवजी
फ़्री स्पीच वाले
freevastav.com
*** यह लेख मैने खान सर के नाम पर उठ रही चर्चाओं और विवादों के संदर्भ में लिखा हैं। सोचा आज मैं भी कुछ टाइमलेस लिखूं, इसलिए लेख में संदर्भों का नाम नही दिया हैं।
आपकी सुविधा के लिए संदर्भ यहां फुटनोट में दिया हैं। आइए कमेंट सेक्शन में बात को आगे बढ़ाते हैं।
Comments
Post a Comment