अभिव्यक्ति की आज़ादी और सोशल मीडिया बैन

आजकल सोशल मीडिया पर नकेल कसने की खबरे बहुत चर्चा में आ रही हैं। एक समय तो यह अफवाह भी फैला दी गयी की सरकार की डेडलाइन नहीं फॉलो करने की वजह से सारे सोशल मीडिया प्लेटफार्म बंद हो जायेंगे। मगर ऐसा हुआ नहीं, होना भी नहीं था।

सरकार ऐसी गलती थोड़े ही कर सकती हैं, इतना बड़ा फैसला अचानक से ऐसे कैसे ले सकती हैं?

सोशल मीडिया को नोटेबंदी या lockdown समझ रखे हैं क्या?

सोशल मीडिया अपने में बहुत बड़ी चीज़ हैं। यह सिर्फ आपको अपने अभिव्यक्ति की आज़ादी ही नहीं देती; राजनैतिक पार्टियों के लिए प्रपंच के प्रवाह का माध्यम भी होती हैं। इसी प्रोपेगंडा से प्रेरित होने के बाद तो हम अपनी अभिव्यक्ति की कर पाते हैं!

Mode of एक्सप्रेशन! फ़्री स्पीच
विचारो का फ्री फ्लो

विचारों को रोक कर, सरकार एक साथ कितने बेचारो को बेरोज़गार कर देगी।

आप समझते हो?

कितने photoshop expert meme artists, blogger, ट्विटर वारियर, व्हाट्सप्प एडमिन्स, फेसबुक मॉडरेटर्स, रेड्डिट, मोटिवेशनल स्पीकर, वीडियो क्लिप एडिटर, हमरे जैसे youtuber; एक बहुत बड़ी जमात हैं - स्किल इंडिया मिशन के तहत इंटरनेट पर रोज़गार पाने वालों की



अगर सोशल मीडिया पर बैन का बाण लग जायेगा; तो न जानें कितने इंटरनेट जीवी बेरोज़गार हो जायेंगे। इसमें तीन चौथाई मैजोरिटी तो सरकारी इंटरनेटजीवियों की हैं। सरकार इन्ही के सपोर्ट पर ही तो टिकी हुई हैं।

अगर सोशल मीडिया पर बैन लगा दिया जायेगा तो फिर; आक्रामक अंदाज़ में सकारात्मकता फ़ैलाने में प्रैक्टिकल चैलेंजेज आएंगी भाई।

बेरोज़गारी का रोना

उसके बाद यह सभी लोग भी बेरोज़गारी का रोना लगेंगे!

मगर रोयेंगे कहाँ? प्रैक्टिकल चैलेंज आएगी।

हम विदेशी अखबार जो हमारी आलोचना करते हैं उनको फिर किस प्लेटफार्म पर ट्रोल कर पाएंगे ? बताइये? उन अखबारों की भारतीय शाखा को कैसे प्रमोट कर पाएंगे? बताइये?

सोशल मीडिया को बैन का बाण लगा; और समाचर पत्रों, चैनलों में पत्रकारिता वापस आ गयी तो?

अकेले कू एप्प से आप क्या क्या मैनेज कर पाओगो? बताइये!

अनार्की फ़ैल सकती हैं





सोंचो,

ऐसे में अनार्की फ़ैल सकती हैं, मिडिल क्लास में मिलिटेंसी की उत्पत्ति हो सकती हैं। सिविल वॉर हो जायेगा, इमरजेंसी लगानी पड़ जाएगी।

इन्ही व्हाट्सप्प फॉरवर्ड्स के सपोर्ट पर सरकार ने जनता को लाइन में लगाने का रिस्क लिया; इसलिए चाहे जितना विवाद हो जाये सोशल मीडिया पर कोई बैन नहीं लगेगा।

सोशल मीडिया से प्रॉब्लम तो दस साल पहले कांग्रेस को भी मिलना शुरू हो गया था। उन्होंने भी इसको बैन नहीं किया; यह लोग का भी ऐसा हीं करेंगे।

आपकी अभिव्यक्ति की आज़ादी - स्वतंत्र हैं - निष्पक्ष हैं की नहीं - यह हम नहीं कह सकते; वह आपका इंटरनल मैटर हैं!

बल्कि हमारे समाज में तबका ऐसा भी हैं जिसके पास अपनी अभिव्यक्ति का कोई अधिकार नहीं बचा। उनके अधिकारों की बात करने के लिए हमको इतनी लम्बी चौड़ी भूमिका रचनी पड़ी।


असली मुद्दा जिसपर हमें चिंता करनी चाहिए 

हमारा लेख छोटा पड़ गया इस भूमिका के सामने। मुद्दा और ज्यादा dilute न हो इस लिए समाज के इस उपेक्षित वर्ग की बात कर लेते हैं।

इस वर्ग के पास असल में अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी का कोई रास्ता नहीं। यह वर्ग हैं राजनैतिक पार्टियों के छुटभैये नेताओ का। पार्टी के शीर्ष नेताओ का कद जितना बढ़ता हैं; छुटभैया नेता समाज उतना ही ज्यादा उपेक्षित होने लगता हैं.

वह सत्ता की organizational hierarchy के पिरामिड में एक विचित्र स्थिति में पाया जाता हैं. जहाँ सत्ता की मलाई high कमान कहती हैं; यह वर्ग एक कार्यकर्ता की तरह बस पार्टी लाइन का अनुसरण करने में लगा रहता हैं।




MLA या MP बन जाने के बाद भी उसको उसकी अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं मिलती। उसको पार्टी के whip को सदन में फॉलो करना ही होता हैं। नहीं तो अनुशात्मक कार्यवाही का ग्रास होना पड़ता हैं।

अगर आप मीडिया में कुछ पार्टी के प्रतिकूल बोलते हुए पाए गए तो आपको शत्रु (घन्न) की तरह देखा जाता हैं; आपकी कीर्ति आपसे आज़ाद हो जाती हैं; आपके सारे यश का वंत हो जाता हैं।

पार्टी पक्ष की हो जा विपक्ष की; कंट्रोलिंग अथॉरिटी का डोमिनान्स सभी नेताओ को ऐसी छुटभैये समाज में रखता हैं.

छुटभैये को चूपभैया बन कर रहना मज़बूरी हैं. इन्हे अभिव्यक्ति की कोई आज़ादी नहीं!

इसलिए जब ऐसे किसी नेता की कोई बेवकूफी वायरल हो रही हो तो हमें थोड़ा रुक कर सोचना चाहिए; की क्या यह सच में उसकी कोई बेवकूफी ही हैं?

या फिर अपने Frustration की अभिव्यक्ति को व्यंग के माध्यम से प्रस्तुत करने का एक तरीका?

सांप भी मर जाए, और लाठियां भी न टूटे!

फ़्रीवास्तवजी
(फ़्री स्पीच वाले)





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