Rachita Taneja पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का केस

रचिता तनेजा भी contempt of court के एक case mein आरोपित हैं। जिस प्रकार कुनाल कमरा ने अर्णब गोस्वामी कि रिहाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की आलोचना में कुछ tweets daale थे। उसी event पर रचिता ने एक कार्टून ट्विटर पर शेयर किया था। 

उस कार्टून में तीन शख्स दिख रहे थे। एक शख्स बीजेपी को represent कर रहा था, दूसरा सुप्रीम कोर्ट को और तीसरा urban Goswami jaisa dikhne wala ek aadmi, jiske gireban par supreme court ka shikanja tha

us cartoon mein Arnab जैसा दिखने वाला शख्स सुप्रीम कोर्ट से कहता हुआ दिखता है " तू जानता नहीं की मेरा बाप कौन है "

हमारे देश की विडंबना है कि हमारे पास सुनीता यादव जैसी वीरांगनाओ की कमी हैं जो ऐसे रांग्रोटो से who's your daddy पूछ सकें। 

मगर ऑफेंड होने वालों की कोई कमी नहीं। इसीलिए रचिता तनेजा के इस कार्टून पर भी एक rashtra bhakt offend हो गया और उसने सुप्रीम कोर्ट में इस ट्वीट के खिलाफ एक याचिका दायर कर दी।

30 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है कि आजकल न्यायालय की आलोचना कुछ ज्यादा ही हो रही है।

रचिता के वकील ने यह दलील दी की कोर्ट की आलोचना कोर्ट की अवमानना नहीं होती। लोकतंत्र में आलोचना करना कोई गलत बात भी नहीं है। 

कोर्ट का समय बर्बाद करने के लिए कुणाल कामरा के केस के साथ-साथ अब रचिता का केस भी चलेगा। फिलहाल अभी रचिता के वकील को पिटिशन कि रिप्लाई देने के लिए 3 हफ्ते का समय दिया गया है। 

आने वाले समय में लगता है कुणाल कामरा और रचिता तनेजा को भी अपनी जेब से 1,1 रुपए की सांकेतिक जुर्माना राशि ढीली करनी पड़ सकती है। अगर वह ₹1 की व्यवस्था नहीं कर पाएंगे तो फिर उन्हें 6 महीने तक के कारावास को जाना पड़ेगा। 

आज मुझे यह भी पता चला कि कोर्ट की अवमानना के लिए जुर्माना की अधिकतम राशि ₹2000 है और 6 महीने तक की सजा का प्रावधान है। 

इस बात पर मैं अपने न्याय तंत्र और सरकार को एक सुझाव देना चाहूंगा। जिस प्रकार नीति आयोग एक कांस्टीट्यूशनल बॉडी है, उसी प्रकार ऑफेंडिंग आयोग नामक एक संस्था का गठन करना चाहिए। 

सरकार और न्यायालय की आलोचना करने वालों को सोशल मीडिया पर इस आयोग के कर्मचारी ढूंढ ढूंढ कर निकाला करेंगे। और उनको ऑफिसियल नोटिफिकेशन भेजकर के जुर्माने की राशि की वसूली कर सकेंगे। 

आयोग द्वारा दोषी पाए गए सोशल मीडिया अकाउंट को जुर्माने की राशि यू पी आई के माध्यम से आयोग में जमा करानी होगी। 

social media पे डाले गए विवादित पोस्ट को लाइक कमेंट शेयर और सब्सक्राइब करने वाले यूजर्स को भी संकेतिक जुर्माना राशि यूपीआई के माध्यम से आयोग में जमा करानी होगी। 

सांकेतिक जुर्माना राशि ₹1 से ₹10 के बीच में तय की जा सकेगी। यह उस समय चल रही मुद्रास्फीति की दर के हिसाब से आयोग डिसाइड किया करेगा।

अल्कोहल के संपर्क में आकर के बेलगाम ट्वीट करने वाले users,  offending आयोग के जुर्माना राशि से बचने के लिए ऑफेंडिंग इंश्योरेंस का भी सहारा ले सकेंगे। 

इस प्रकार पेटीशनर्स सुप्रीम कोर्ट का समय बर्बाद ना करके आयोग को सूचित करके राष्ट्रहित के प्रति अपने कर्तव्य का पालन कर सकेंगे। 

आयोग भी कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा लोगों से जुर्माने की राशि को वसूल करके देश की वित्तीय घाटे को भरने में अपनी तरफ से एक अमूल्य योगदान दे सकेगी।

₹2000 की रकम इकट्ठा करके सोशल मीडिया पर विवादित पोस्ट डालने वाले रंग रूट अपने अभिव्यक्ति की आजादी की प्रैक्टिस कर सकेंगे। आर्थिक रूप से असमर्थ users crowdfunding  financing, disclosed or undisclosed sponsorship from political parties का सहारा लेकर के अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का पालन कर सकेंगे। 

इस मॉडल में सरकारी एवं गैर सरकारी रोजगार का उत्सर्जन भी होगा। और हमारे न्यायालय के पास ज्यादा महत्वपूर्ण cases के निपटारे के लिए पर्याप्त समय मिल सकेगा।

वित्त मंत्रालय और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को मेरे इस सुझाव पर गौर करना चाहिए। और इस दिशा में जनता से और सुझाव लेने के लिए एक कंसल्टेशन पेपर अविलंब जारी कर ही देना चाहिए। 

फिलहाल आप को सरकार के कंसल्टेशन पेपर का वेट करने की जरूरत नहीं है। आप इस पोस्ट के कमेंट सेक्शन में अपने सुझाव आज ही शेयर कर सकते हो।


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