परिवर्तन रैली और किसान आंदोलन

देशभर में किसानों का चक्का जाम और बंगाल में बीजेपी की परिवर्तन रैली

उत्तर भारत के कई प्रमुख शहरों में आज किसानों का शांतिपूर्ण चक्का जाम था। दिल्ली पुलिस भी आज बहुत ज्यादा सतर्क थी। 
26 जनवरी से सबक लेते हुए दिल्ली पुलिस ने दिल्ली में चक्का जाम को लेकर काफी पुख्ता तैयारी कर रखी थी। 

अजीब बात है किंतु सत्य है। 
जब दिल्ली में ट्रैक्टरों का जनसैलाब आया था तब दिल्ली पुलिस की तैयारी उपयुक्त नहीं थी। 

उपद्रवियों के लिए एक सरल एवं सुगम रास्ता लाल किले तक के लिए मिल गया था। 

किंतु आज की तारीख में दिल्ली की चारों तरफ से किलेबंदी की जा चुकी है। जबकि सारे प्रदर्शन दिल्ली के बाहर ही हो रहे हैं। 

यह चक्का जाम शांतिपूर्ण रहा। 
कुछ एक छिटपुट अपवाद को छोड़कर। 

उत्तर भारत में जहां भारतीय जनता पार्टी और उसकी सरकार संविधान लोकतंत्र और कायदे कानून की बात करती है। 

वहीं दूसरी तरफ बंगाल में आज हमें इस बात का कंट्रास्ट देखने को मिल रहा है। 

आज से भारतीय जनता पार्टी बंगाल में परिवर्तन रैली का आरंभ कर रही है। 

भारतीय जनता पार्टी को इस परिवर्तन रैली के लिए पश्चिम बंगाल के प्रशासन की तरफ से मंजूरी नहीं मिली है। 

लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नेता एवं कार्यकर्ता इस बात को लेकर के आश्वस्त हैं की परमिशन नहीं मिला तो क्या हम तो यह रैली करके ही रहेंगे। 

उत्तर भारत में जहां भारतीय जनता पार्टी कायदे कानून की दुहाई देती नजर आ रही है, 
वहीं पश्चिम बंगाल में पार्टी और उसके कार्यकर्ता  आज कायदे कानून को तोड़ने पर आमादा है। 

सबसे बड़ी बात कि इस रैली का नाम "परिवर्तन रैली" रखा क्या है। 
मगर भारतीय जनता पार्टी में परिवर्तन क्या हुआ है। 

30 साल पहले भी व धर्म की राजनीति करते थे। 
और आज भी उनकी राजनीति धार्मिक उन्माद पर ही आधारित है।  

पश्चिम बंगाल में सत्ता हासिल करने के लिए वह इसी नीति का प्रयोग कर रहे हैं। 

30 साल पहले आडवाणी रथ लेकर निकला करते थे आज जेपी नड्डा रथ लेकर निकलेंगे। 

बंगाल की जनता को गलत और कम गलत में से किसी एक को चुनना है।

बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के शक्ति प्रदर्शन से यह साफ है की पार्टी के पास बहुत ही ज्यादा funds है। 

अभी तक इलेक्शन कमीशन ने चुनावों के तारीख की घोषणा नहीं की है। किंतु भारतीय जनता पार्टी पिछले 2 महीने से बंगाल में चुनाव प्रचार करती हुई दिख रही है। 

राम के नाम पर यह रथ यात्राएं और रैलियां निकाल रहे हैं। 

वही राम जिन्होंने 14 वर्ष वनवास के दौरान चप्पल तक नहीं पहनी थी। 

जिस राम के नाम से करुणा एवं दया भाव की अनुभूति होती है, उसी राम के नाम को भारतीय जनता पार्टी ने "जय श्री राम" का युद्ध गर्जना बना दिया है। 

सबके अपने अपने राम होते हैं। 
मेरे राम पाखंड एवं प्रोपेगेंडा प्रिय तो बिल्कुल भी नहीं है। 

और आपके?


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