हमारी सरकार मीडिया पर अंकुश लगाती हुई दिख रही है.

हमारी सरकार मीडिया पर अंकुश लगाती हुई दिख रही है. 

गोदी मीडिया शब्द से आप सभी परिचित होंगे ही. लेकिन अभी भी ऐसे बहुत से मीडिया संस्थान है जो सरकार के बताए हुए नक्शे कदम पर नहीं चलते. 

अभी भी ऐसे मीडिया संस्थान है जो निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहे हैं. 

निष्पक्ष पत्रकारिता करते हुए यह मीडिया संस्थान सरकार के दिशानिर्देशों का कदमताल नहीं कर रहे. मुखर होकर की सरकार की आलोचना करना इनके लिए समय-समय पर भारी पड़ जाता है. 

सरकार राइट विंग विचारधारा की है. राइट विंग विचारधारा के लोग सरकार के आलोचकों को लेफ्ट विंग या liberal कहकर की संबोधित करते हैं. दक्षिणपंथी विचारधारा उग्र राष्ट्रवाद ka bhi पर्याय बन चुका है. 

इसलिए जो भी इस विचारधारा से तालमेल नहीं रखता उसको एंटी नेशनल करा दिया जाता है.

सरकार के आलोचकों को टुकड़े टुकड़े गैंग अर्बन नक्सल लिब्रांडू लेफ़्टिस्ट्स और एंटी नेशनल जैसे नामों के साथ संबोधित किया जाता है. सरकार अपने सिस्टम के तहत अपने आलोचकों पर अंकुश करने का प्रयास करती दिखती रहती है.

जैसी न्यूज़क्लिक इन के दफ्तर पर एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट का छापा पड़ा. उनके ऊपर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगा हुआ है. 

सिंघु बॉर्डर पर लोकल्स के द्वारा किए गए प्रोटेस्ट को अमनदीप पुनिया नाम के पत्रकार ने फेसबुक लाइव द्वारा कवर किया था. उसके रिपोर्टिंग में तथ्यों के साथ यह बात प्रस्तुत की गई थी की लोकल्स के नाम पर राजनीतिक पार्टी के संगठनों से संबंधित कार्यकर्ता झड़प में शामिल थे. 

मनदीप पुनिया पर भी अंकुश लगाया गया और उसको पुलिस ने अन्य चार्जेस पर गिरफ्तार कर लिया. 

द वायर के team को अलग-अलग मामलों में मानहानि के कई केसेस लड़ने पढ़ रहे हैं. उनकी गलती सिर्फ यह है कि उन्होंने अपने रिपोर्ट्स के थ्रू सत्य उजागर करने की कोशिश की. 

अभिसार शर्मा पुण्य प्रसून बाजपाई अजीत अंजुम जैसे पत्रकारों को अपने मीडिया हाउस की जॉब को छोड़ना पड़ा क्योंकि उनके ऊपर दबाव डाला गया कि वह सरकार की आलोचना वाली न्यूज़ रिपोर्ट्स ना दिखाएं. 

प्रशांत भूषण कुणाल कमरा रचिता तनेजा जैसे लोगों को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के केस का नोटिस इसलिए मिला क्योंकि उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर सुप्रीम कोर्ट के पक्षपात पूर्ण फैसलों की आलोचना की. 

गौरी लंकेश जैसे पत्रकारों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ा क्योंकि वे सरकार एवं राइट विंग विचारधारा के प्रबल आलोचक थे.
 
मुनव्वर फारूकी तो अपना शो भी शुरू नहीं कर पाया था और उसे गिरफ्तार कर लिया गया था। 

ऐसा नहीं है कि left-wing विचारधारा एक परफेक्ट विचारधारा है. अगर वामपंथी विचारधारा परफेक्ट होती तो यू एस एस आर का विघटन नहीं हुआ होता. आज की तारीख में नॉर्थ कोरिया तानाशाही का पर्यायवाची ना होता. चीन में आज की तारीख में मानव अधिकार का हनन ना हो रहा होता. 

कम्युनिस्ट विचारधारा की अपनी खामियां है. 

किंतु चाहे वह कम्युनिस्ट हो या कम्युनलिस्ट इन दोनों विचारधारा के एक्सट्रीम एंड पर तानाशाही ही दिखती है. इतिहास पर अगर हम नजर डालें तो हिटलर और मुसोलिनी जैसे तानाशाह right-wing विचारधारा से ताल्लुक रखते थे. 

आप भी जानते हो कि इतिहास में सबसे बड़े तानाशाह वही माने जाते हैं.

लेफ्ट विंग ने भी स्टालिन फिडेल कैस्ट्रो किंग जॉन जैसे तानाशाह दुनिया को दिए. 

लेकिन बात जब लोकतंत्र की आती है तब जनता के पास या अधिकार होना चाहिए कि उसे क्या चुनना है. इसलिए एक आम जनमानस के लिए यह जरूरी हो जाता है कि उसके पास हर तरह की विचारधारा का एक्स्पोज़र हो. अगर सरकार अपनी आलोचना करने वालों का मुंह बंद करने का प्रयास करेगी तो हम एक नागरिक होने के नाते सत्य से अनभिज्ञ रहेंगे. 

अगर कोई गलत आलोचना कर रहा है तो उस आलोचक को तथ्यों के साथ या प्रमाण दिया जा सकता है कि आपकी आलोचना गलत है.

किंतु यदि आप उस आलोचक के साथ बल का प्रयोग करोगे तो यह बात स्पष्ट हो जाएगी कि आपके पास अपनी आलोचना को काउंटर करने के लिए तथ्य नहीं है. 

पुलिस एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट सीबीआई न्यायालय और लोकतंत्र के अन्य संस्थाओं का प्रयोग अपने आलोचकों को न्यूट्रलाइज करने के लिए करना अनुचित है.

आलोचना तभी होती है जब पारदर्शिता की कमी होती है. पिछले कुछ सालों में ऐसे बहुत से मामले आए हैं जिनमें पारदर्शिता की कमी की वजह से सरकार की आलोचना हुई है.

साथ ही साथ सरकार की चापलूसी करने वाले व्यक्तियों के साथ favouritism भी प्रत्यक्ष है. प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती. 

सरकार अपनी आलोचना को सराहना के स्वर के साथ भी दबाने का प्रयास कर रही है. इन सराहना की स्वरों को हम बीजेपी आईटी सेल के नाम से जानते हैं. 

मीडिया संस्थानों को इस capitalist economy में survive करना है तो उन्हें सरकार का मुखपत्र बनना होगा। पत्रकारिता में अब ऐसा माहौल बन रहा है।

एक आदर्श पत्रकारिता किसी भी विचारधारा का मुखपत्र नहीं हो सकती। और एक आदर्श सरकार अपनी विचारधारा से मेल नहीं खाने वालों का मुख भी बंद नहीं कर सकती। 

किंतु हम आदर्श भारत में भी तो नहीं है .....


 

Comments