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उड़िया में बनी फिल्म काली का अतीत जिस का इंग्लिश में मतलब है यस्टरडे फास्ट यानी कि कल का अतीत ऑस्कर नॉमिनेशंस की दौड़ में शामिल है. उम्मीद करते हैं की काली अतीत ऑस्कर की जनरल कैटेगरी 4 ki best movie best director and best actor के लिए अंतिम 5 में 9 नामांकित हो जाए।

काली रा अतीत की कथा पृष्ठभूमि उड़ीसा के तटीय क्षेत्र में बसे साता भाया गांव के समूह पर आधारित है। आज की तारीख में साता भाया समूह के सातो गांव समुद्र में समा चुके हैं। समुद्र द्वारा तटीय क्षेत्र का कटाव जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का एक सटीक उदाहरण है।

कलीरा अतीत के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए आई बटन पर दिए गए वीडियो को देखें ।

इस वीडियो में हम कलीरा अतीत के डायरेक्टर नीलमाधव पांडा के बारे में जानेंगे।

आपने आई एम कलाम मूवी के बारे में तो जरूर ही सुना होगा। हो सकता है देखा भी हो। नील माधव पांडा ने आई एम कलाम मूवी भी बनाई थी। आई एम कलाम एक बहुत ही प्रेरणादायक मूवी है अगर आपने यह मूवी नहीं देखी है तो इसे जरूर देखें।

आई एम कलाम नीलमाधव दत्ता की पहली फीचर फिल्म थी जिसे 34 इंटरनेशनल अवॉर्ड्स मिले थे। और भारत सरकार की तरफ से नेशनल अवार्ड भी मिला था।

नील माधव पांडा नहीं 70 से अधिक फीचर फिल्में , शॉर्ट मूवीस और डॉक्युमेंट्रीज बनाई है।

पांडा की फिल्में और डॉक्युमेंट्रीज जलवायु परिवर्तन, बाल मजदूरी, शिक्षा, साफ सफाई, पानी से रिलेटेड मुद्दे, जैसे सीरियस इश्यूज पर आधारित हैं।

नील माधव पंडा को भारत सरकार की तरफ से पदम विभूषण भी मिला है।

नील माधव पांडा पर्यावरण से जुड़े कई फिल्म बना चुके हैं। कथित तौर पर भारतीय सिनेमा में पर्यावरण पर जुड़ी सबसे पहली फिल्म कड़वी हवा का निर्माण भी नील माधव पांडा नहीं किया।

इस फिल्म में एक ऐसे समय की तस्वीर पेश की गई है, जहां जलवायु परिवर्तन की वजह से पृथ्वी के अलग-अलग जगहों पर बारिश का पैटर्न बहुत ही अनियमित हो गया है। जहां उड़ीसा जैसे जगह पर बरसात और साइक्लोंस अब और भी ज्यादा आने लगे हैं वहीं भारत के अंदरूनी इलाकों जैसे बुंदेलखंड में बारिश बहुत कम हो रही है।

जिसकी वजह से किसानों को आत्महत्या तक करनी पड़ जाती है।

कड़वी हवा में भी उड़ीसा के तटीय क्षेत्र के गांवों का समुद्र में विलुप्त हो जाने का जिक्र है।

कड़वी हवा 2017 में बनी थी। काली रा अतीत 2020 की फिल्म है। समुद्र की कटाई की वजह से उड़ीसा के Coastal areas में गांवों का विलुप्त होना --- इस विषय पर नील माधव पांडा 2006 से रिसर्च कर रहे है।

जलवायु परिवर्तन या फिर क्लाइमेट चेंज को हम जब भी डिस्कस करते हैं उसको अर्थ साइंस के प्रैक्टिस से ही हम उसके बारे में बात करते हैं।

लेकिन क्लाइमेट चेंज का एक दूसरा पहलू भी है और वह है कि बदलते क्लाइमेट के साथ-साथ हमारा बर्ताव हमारे सोचने का नजरिया और हमारे जीवन में क्या क्या बदलाव हो सकते हैं।

नीलमाधव दत्ता की फिल्में जलवायु परिवर्तन के साथ साथ हम में और हमारे समाज में में होने वाले साइक्लोजिकल चेंजेज को भी अपने फिल्मों में चित्रित किया है।

कौन कितने पानी में और बबलू हैप्पी है भी इनकी क्रिटिकली एक्लेमद मूवीस है।

नील माधव पांडा ने BBC, डिस्कवरी चैनल नेशनल ज्योग्राफिक चैनल यूनाइटेड नेशंस के विभिन्न ऑर्गेनाइजेशंस भारत सरकार और राज्य सरकारों के लिए अलग-अलग विषयों पर कई डॉक्युमेंट्रीज बनाई है।

GOD'S OWN PEOPLE इनकी एक बहुचर्चित डॉक्यूमेंट्री फिल्म है जिसमें अमिताभ बच्चन ने नरेशन किया है। भगवान और पेड़ में लोगों की आस्था का क्या कनेक्शन है -इस डॉक्यूमेंट्री में बताया गया है।

नीलमाधव पंडा ने भारतीय सिनेमा को एक विशिष्ट पहचान दिलाई है। इनका योगदान सराहनीय है।

आशा करते हैं कि आने वाले समय में भी नील माधव पांडा हमें ऐसे ही दिल को छू लेने वाले सिनेमा से रूबरू कराते रहेंगे।

और साथ ही साथ हमें अपनी ले लिया कामना करनी चाहिए कि हम चटक मटक और शो शा वाली सिनेमा के परे सेंसिबल सिनेमा को भी अप्रिशिएट करने का ऐपेटाइट अपने अंदर ला सकें।

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