Social media Kisan protest ka ek aur theatre

 कृषि कानूनों का विरोध किसान सिर्फ दिल्ली के बॉर्डर पर नहीं कर रहे। कृषि कानूनों का विरोध और समर्थन करने वाले लोग सिर्फ सिंह को टिकरी या गाजीपुर बॉर्डर पर आमने सामने नहीं है। सिर्फ चक्का जाम और उसका विरोध सड़कों पर नहीं हो रहा।


सड़कों से कोसों दूर दुनिया भर में इंटरनेट के माध्यम से यह लड़ाई इंटरनेट पर भी चल रही है

कुछ कृषि नेताओं ने यह बयान दिया था कि इंटरनेट पर क्या चल रहा है इस बात से उन्हें कोई मतलब नहीं ग्राउंड जीरो पर जो आंदोलन हो रहा है वही असली आंदोलन है.


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उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि इंटरनेट पर रिहाना या ग्रेटा थनबर्ग या कोई और क्या बोल रहा है। उन्हें इस बात से भी नहीं फर्क पड़ता कि कितने फिल्म सितारे और कितने क्रिकेटर भारत सरकार के पक्ष में आकर के मुखर हो रहे हैं। उनके हिसाब से असली आंदोलन किसानों का है और किसान इस आंदोलन को जमीन पर लड़ रहे हैं।

लेकिन क्या यह एक वास्तविकता है। इस सोच पर एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है

क्योंकि पिछले कुछ हफ्ते के अनुभवों से मुझे तो यही दिख रहा है कि ऑनलाइन एक्टिविटीज ज्यादा सुर्खियां बटोरने में सफल हो रही है।


इसीलिए तो मिनिस्ट्री आफ एक्सटर्नल अफेयर्स को रिहाना और ग्रेटर के ट्वीट्स को काउंटर करने के लिए अपना स्टेटमेंट जारी करना पड़ा।

और भारत के कई सेलिब्रिटीज को सरकार के ट्वीट के साथ कदम ताल मिलाकर के ट्वीट करना पड़ा

कृषि कानूनों के विरोध के पक्ष में या फिर विपक्ष में मुखर आवाजें इंटरनेट के माध्यम से भी आ रही है। वसुंधरा हमारी एक कुटुंब हो चुकी है इंटरनेट इस बात को चरितार्थ करता है।

इसलिए दुनिया में कहीं भी कोई भी घटना हो रही हो इंटरनेट के माध्यम से वह कई लोगों तक पहुंच जाती है।

इंटरनेट की वजह से दुनिया के अलग-अलग कोने में बैठे लोग आपस में एक स्ट्रैटेजिक कोऑर्डिनेशन भी establish कर सकते हैं

Toolkit document इस बात का जीवंत उदाहरण है

टूल किट डॉक्यूमेंट का हवाला लेकर के उसकी आलोचना करने वाले भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल मेंबर भी इस डॉक्यूमेंट की बारीकियों को अच्छे से समझते हैं

क्योंकि वह भी तो कुछ इस तरह के इंस्ट्रक्शन मैन्युअल का सहारा लेकर के ट्विटर पर रोज एक नया ट्रेंड चलाते हैं।

बस उनका डॉक्यूमेंट पब्लिक नहीं है।

Twitter ek bahut hi Vichitra madhyam hai।

ऐसा पता चला है कि 1000 से भी ज्यादा टि्वटर अकाउंट्स मिस इंफॉर्मेशन फैलाने में सक्रिय थे।

भारत सरकार ने ट्विटर को नोटिस भेजकर के इन अकाउंट्स को सस्पेंड करने की रिक्वेस्ट की थी। कथित तौर पर इंटेलिजेंस इनपुट के आधार पर बहुत से टि्वटर अकाउंट्स पाकिस्तान से ऑपरेट हो रहे थे।

इनमें से बहुत से अकाउंट्स ऑटोमेटेड bots के द्वारा कंट्रोल्ड थे ना कि किसी रियल पर्सन की द्वारा।

हम अपने स्क्रीन पर - सोशल मीडिया वेबसाइट्स पर जो इंफॉर्मेशन देख रहे होते हैं हमें नहीं पता होता कि वह किसी इस्टैबलिश्ड न्यूज़ एजेंसी ने लिखी है या किसी मनचले व्यक्ति ने या फिर किसी सोफिस्टिकेटेड एल्गोरिदम ड्रिवन सॉफ्टवेयर बॉट ने।

सत्य से ज्यादा तीव्र गति से मिस इंफॉर्मेशन फैलता है। मिस इंफॉर्मेशन के द्वारा उपद्रव और फैलाया जा सकता है। लोगों की भावनाओं को मैनिपुलेट करके उनसे मोब लिंचिंग एवं दंगा जैसे अपराध कराना संभव हो जाता है।

भावनाओं को भड़काने के लिए यूट्यूब वीडियोस भी एक सुगम माध्यम है।

वीडियोस के माध्यम से लोगों के मन मस्तिष्क में बातें डाली जाती है।

Propaganda sangeet pradarshan pradarshan karyon ka anthem ban jata hai। यूट्यूब वीडियोस के प्रोपेगेंडा संगीत एंथम के साथ-साथ उपद्रव करने की हिडन इंस्ट्रक्शन का भी काम कर सकते हैं।

इसी को ध्यान में रखते हुए यूट्यूब ने भारत सरकार के अनुरोध पर कुछ ऐसे म्यूजिक वीडियोस को बैन किया है जो किसान आंदोलन में युवाओं को भड़काने का कार्य कर रहे थे।

लेकिन यह सिक्के का सिर्फ एक पहलू है।

Mob को भड़काने के लिए सिर्फ एक ही तरफ से ऐसा नहीं होता है।

सत्ता पक्ष का समर्थन रखने वाले आईटी सेल भी अपने टारगेट ऑडियंस को प्रभावित करने के लिए सक्रिय भूमिका निभाते हैं।

अगर आप ट्विटर पर लोगों के ट्वीट का पैटर्न देखें तो आपको यह साफ-साफ दिख जाएगा की सरकार का समर्थन करने वाले भी अभद्र भाषा एवं प्रोपेगेंडा की भाषा में बात करते हैं।

लोगों को इमोशनल बनाने का प्रयास सत्ता पक्ष के समर्थकों द्वारा भी चलता है।

लोगों में भेदभाव बढ़ाने वाली संगीत जो हिंदू राष्ट्र की वकालत करती हैं इंटरनेट पर भरी पड़ी है। इन के माध्यम से भी प्रोपेगेंडा फैलता है।

किसान आंदोलन को भी एक सांप्रदायिक तस्वीर देने का प्रयास इन प्रोपेगेंडा माध्यमों ने किया है।

Social media or internet par yah propaganda krishi Kanoon ke merits and demerits ke discussion se aage badhkar ke hindu dharm और सिख Dharm ke logon ke bich mein nafrat ki khai khodne ka kam kar raha hai

आपको ट्विटर पर ऐसे बहुत से भक्त मिल जाएंगे जो किसान आंदोलन की आलोचना सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उनके मन में यह बात पिरोया गया है की या आंदोलन खालिस्तानी मूवमेंट द्वारा स्पॉन्सर्ड है।

इसी प्रकार किसान आंदोलन में भी आपको अराजक तत्व मिल जाएंगे जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से खालिस्तान का संवाद लेकर आएंगे।

युवाओं के गर्म खून को प्रोपेगेंडा के द्वारा उबालना और भी सरल है। युवाओं का जोश rational लॉजिक को नहीं पहचान पाता।

जोश आग की तरह या बोले तो एक वायरस की तरह जनता में फैलता है और अन्य आयु वर्ग को भी प्रभावित करता है।

यह बात सत्य है कि किसान आंदोलन ग्राउंड पर लड़ा जा रहा है। किंतु हम सभी के हाथ में मोबाइल फोन है और इंटरनेट की सुविधा है। इसलिए किसान आंदोलन एक जमीनी आंदोलन के साथ-साथ एक साइबर आंदोलन में भी तब्दील होता जा रहा है।

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