संस्कृत वाली हिंदी

आज की तारिक में विपक्ष कमजोर हो चूका हैं. ऊपर से वह संगठित भी नहीं हैं; और दिशाहीन तोह हैं ही. कांग्रेस पार्टी ही विलुप्त होने की कगार पर हैं. संघ और पार्टी का सपना भी हैं कांग्रेस मुक्त भारत का.


विपक्ष के इस बदहाली का मुख्य कारण क्या हैं? Nepotism? Corruption? Secularism? Regionalism? Castism? Capitalism?

यह सब छोटे मोटे कारण हैं.
मेरे हिसाब से विपक्ष के पतन का सबसे प्रमुख कारण है विपक्ष के नेताओ में "संस्कृत वाली हिंदी" के ज्ञान का आभाव!

अगर आपको संस्कृत वाली हिंदी बोलने का ज्ञान नहीं होगा तो फिर आपको राजनीति करने में ऐसी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।

भारत की राजनीति में इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि आपकी बात में कितनी गहराई है फर्क इस बात से पड़ता है कि आपकी भाषा आपके श्वेता को किस तरह से प्रभावित कर सकती है।

अगर आप बोलचाल वाली भाषा में गहरी बात बोल जाओगे तो सुनने वाला आपकी बात को गंभीरता से नहीं लेगा।
लेकिन अगर आप भारी भरकम शब्दावली के साथ मामूली बात भी बोल जाओगे तो आपका श्रोता आपके बात से गहराई खुद ही खोद करके जान लेगा।

कांग्रेस और समूचे विपक्ष के नेताओं में यही तो सबसे बड़ी खामी है। कि वह आसान भाषा में बड़ी बात बोलने की कोशिश करते हैं। इसीलिए तो आपको "मेरा भारत महान" जैसे नारे से कभी भी राष्ट्रवाद की अनुभूति नहीं हो पायी।

लेकिन अगर आप ऐसा कहो की उदयमान चलयमान शत स्वाभिमान आत्मनिर्भर विश्व गुरु भारतवर्ष महान तो फिर आपकी बोली आपके भक्तों को प्रभावित करती जाएगी- करती जाएगी

भारत की महिमा और गरिमा का व्याख्यान करने में यदि आप विहंग दूत की कुछ पंक्तिया सुना देंगे तोह फिर क्या कहना, आप राष्ट्रवाद की धरोहर माने जाने लगोगे. और अगर कुछ एक श्लोक संस्कृत के बोल दिए तोह फिर जनता आपकी सच्ची भक्त ही हो जाएगी!

अब भक्तों का जिक्र आ ही गया है तो फिर आप जान लो भक्त बनाने की प्रक्रिया में यह संस्कृत वाली हिंदी बहुत ही कार्योपयोगी होती है।

संस्कृत वाली हिंदी एक ऐसी करेंसी होती है जिसको डिमॉनेटाइज नहीं किया जा सकता।

ऊपर से अगर आपको केंद्र में सरकार बनानी है तो फिर आपको हिंदी हार्टलैंड का हृदय सम्राट तो बनना ही पड़ेगा। विरोधाभास हैं किन्तु सत्य हैं; प्रजा तंत्र में आपको सरकार चलनी हैं तोह राजा बनना ही पड़ेगा।

इसलिए संस्कृत वाली हिंदी राजनैतिक तरक्की के लिए अनिवार्य है।

अगर आप संस्कृत वाली हिंदी में बात करते हो, और गलती से कैमरा के सामने किसी व्यक्ति को चुतिआ जैसी गाली भी दे देते हो, तो भी आप के भक्त; आप के बचाव में ;आपके द्वारा कहे गए अब शब्दों को हिंदी शब्दकोष और संस्कृत के व्याकरण से निकाल कर के आपके लिए स्वयं से स्पष्टीकरण के लिए प्रस्तुत कर देंगे।

अब मौजूदा समय में यही तो विडंबना है। राहुल गांधी टि्वटर पर कहते हैं की बड़ी प्रॉब्लम आने वाली है। ज्यादा रचनात्मक होने की कोशिश करते हैं तो प्रॉब्लम को सुनामी बता देते हैं।

लेकिन हमारे प्रधान सेवक महोदय प्रॉब्लम को आपदा कहते हैं और "तुम लोग अपना -अपना खुद से ही देख लो ; अब किया भी क्या जा सकता हैं " ऐसा ना बोल कर के आपदा में अवसर, आत्मनिर्भर, आवश्यक, अनुरोध, विनती, और तपस्या जैसे प्रभावी शब्दों का प्रयोग करते हैं।

ऐसी rich शब्दावली की वजह से हमारे पीएम एक लेवरेज gain कर लेते हैं।

भारी भरकम शब्दों के चयन की वजह से आज आकाश चोपड़ा भी क्रिकेट कमेंट्री में अपने झंडे गाड़ रहे हैं।

सरकार चलाना भी तो एक कमेंट्री की तरह ही होती है। काम तो आप की कार्यपालिका करती है। सुझाव भी कार्यपालिका देती है, execution भी एग्जीक्यूटिव बाबुओं को ही कराना होता हैं, करप्शन में भी उनका योगदान होता हैं।

विधायिका और मंत्रियों का काम commentary ही तो होता हैं। अब अगर आपको अपनी कमेंट्री इंटरेस्टिंग बनानी है तो फिर आपको संस्कृत वाली हिंदी तो बोलनी ही पड़ेगी।

आप शशि थरूर से कितना भी हाई फंडू अंग्रेजी बुलवा दो, वह कांग्रेस पार्टी का माइलेज नहीं बढ़ा पाएगी।

लेकिन अगर आप संबित पात्रा जैसे ही एक दर्जन प्रवक्ता ही बैठा दो; तो फिर आप यक़ीनन विपक्ष कुछ इंपैक्ट gain करने में सफल जरूर हो जायेगा।

उसके बाद तो विपक्ष को सॉफ्ट हिंदुत्व का भी चोला ओढ़ने की जब दरकार नहीं होगी।

Communist UTOPIA का Manifesto को भी अगर संस्कृत वाली हिंदी में पढ़ा जाए तोह इलेक्शन विनिंग मैंडेट हासिल किया जा सकेगा!

राहुल गांधी का 2014 में अविष्कार किया हुआ आलू से सोना बनाने वाली मशीन आज भी एक ट्रेंडिंग meme हैं।

लेकिन अगर राहुल गांधी की संस्कृत वाली हिंदी बोलने का Aptitude होता तो फिर आलू सोना एक MEME नहीं राजनैतिक श्लोक बन चुका होता।

आलूकम को स्वर्ण मुद्राओं में परिवर्तित करने का संयंत्र।

अगर राहुल गांधी ऐसा कुछ कहते तो वह meme नहीं, मिसाल बन जाता।

जिस प्रकार बादलों में रडार, विंडमिल से ऑक्सीजन, आम्र फल खाने के विभिन्न तरीके, इत्यादि को एक सफल वक्ता के प्रभावी वक्तव्य के रूप में जाना जाता है।

अगर आप संस्कृत वाली हिंदी बोलोगे तोह आपकी बातें meme नहीं दर्शन अर्थात philosphy की तरह देखि जाएँगी. साथ में आप फिलॉस्फर का गेटउप भी धारण कर लो; तोह इम्पैक्ट मैक्सिमम होगा!

आज देश में किल्लत हैं ऑक्सीजन सिलिंडर की. प्रधानमंत्रीजी ने तोह वैज्ञानिकों से आह्वाहन भी किया था की विंड मिल से बिजली के साथ पानी और ऑक्सीजन भी नकालो।

आज हम इस बात को MEME नहीं VISION की तरह देख रहे हैं!

संस्कृत वाली हिंदी में बात करके प्रेस कॉनफेरेन्स में रविशंकर प्रसाद राहुल गांधी के ऊपर ऐसे चिल्लाते हैं जैसे राहुल बाबा उनका कोई नालायक पुत्र हो और सुरजेवाला नालायक बेटे का नालायक दोस्त!
वक्तव्य की मर्यादाओ पर कोई प्रश्न नहीं उठता; चुकी यह सारी बातें संस्कृत वाली हिंदी में बोली जाती हैं; इसलिए इनकी कभी आलोचना नहीं हो पाती।

हमारी निर्मला ताई दक्षिण भारत से आती हैं। इसलिए वह संस्कृत वाली हिंदी में बात नहीं कर पाती। हालांकि वह कोशिश करती हैं; जब भी उनको संस्कृत वाली हिंदी लिख कर दी जाती है तो पढ़ कर बोल भी देती है।

लेकिन अनायास ही "एक्ट ऑफ गॉड" और "ओवर साइट" जैसे अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करके वह आसानी से शब्दों के जाल में फंस जाती हैं।

Act of God की जगह प्राकृतिक आपदा, वैश्विक महामारी, विकट परिस्थिति, जैसी वोकैबुलरी यूज करके मोदीजी अपने समर्थकों से क्लीन चिट पा लेते हैं।

संस्कृत वाली हिंदी का ही प्रभाव हैं की हमारी सरकार को कुल एक्रोनिम बनाने में महारत हासिल हैं। फॉर एक्साम्पल "आयुष" एक धर्म निरपेक्ष कुल एक्रोनीम हैं।

रिनेम पॉलिटिक्स में भी संस्कृत वाली हिंदी का विरोध नही हो पाता।
स्मॉल सेविंग स्कीम को जब जनधन कहा जाता हैं तो एक पौराणिक ध्वनि का उत्सर्जन होता हैं। एनपीएस लाइट को अटल योजना कहने से वह अलौकिक ही हो जाता हैं।
इलाहाबाद प्रयागराज होते हो और भी ज्यादा धार्मिक हो जाता हैं।

अगर कांग्रेस और समूचे विपक्ष को अपना अस्तित्व बचना हैं तो संस्कृत वाली हिंदिको अपनाना ही होगा।

आप की क्या राय है?

फ़्रीवास्तवजी
(Free Speech वाले)


Comments