मित्रों,
आप जहां भी देख लो लोग पत्थरकंडी के कांड की आलोचना कर रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी और केंद्रीय चुनाव आयोग का मजाक उड़ा रहे हैं। भाजप और केचुआ के ऊपर memes बन रहे हैं।
जैसा कि आपको मालूम होगा कि असम के पथरकंडी में केंचुआ की गाड़ी पंचर हो जाती है। उसके बाद चुनाव अधिकारि एक गाड़ी से लिफ्ट मांगते हैं। ताकि वो चुनावों के संपन्न होने के बाद ईवीएम मशीनों को हेड ऑफिस पर समय से पहुंचा सके
चलती का नाम गाड़ी होता है और बढ़ती का नाम दाढ़ी।
मजबूरी का नाम महात्मा गांधी क्यों है वह पता नहीं।
बाहर हाल नाम की अपनी ही महिमा है
मगर किसी ने ऐसा भी कहा है कि नाम में क्या रखा है।
लेकिन
पत्थरकंडी के कांड में भाजप और केंचुआ का नाम बदनाम हो रहा है
लेकिन,
किसी से मदद मांगना गलत है क्या? किसी की मदद करना अपराध है क्या? क्या विधायक इस देश का नागरिक नहीं होता है क्या? क्या एक नागरिक दूसरे नागरिक की मदद नहीं कर सकता है क्या?
अब आप ही मुझे बताइए कि इसमें गलत क्या हुआ था
अगर वह गाड़ी किसी विधायक की निकल गई तो इस पर हंगामा करने का कोई मतलब है क्या? ऐसे हंगामे की कोई जरूरत है क्या? ट्विटर पर ट्रेंड चलाने की जरूरत थी क्या?
सुप्रीम कोर्ट के सिवाय ट्विटर को सीरियसली कौन लेता है? आज का ट्रेंड आप कल भूल ही जाने वाले हो तो ट्रेंड कराने की जरूरत क्या हैं
जरा आप मुझे जवाब दीजिए,
क्या विधायक इस देश का नागरिक नहीं होता है क्या?
क्या एक नागरिक दूसरे नागरिक की मदद नहीं कर सकता है क्या?
मशीनों को पाए जाने तक मशीनों के साथ कोई छेड़छाड़ पाई गई थी क्या?
Electronic voting machine ईवीएम किसी से खोला नहीं जा सकता, उसके साथ खेला होबे नहीं किया जा सकता,
बस बदला जा सकता है।
लेकिन फिर भी चुनाव आयोग पत्थर कंडा के बूथ नंबर 147 पर फिर से चुनाव करवाएगा।
मेरा बूथ सबसे मजबूत। बस ट्रांसपोर्टेशन की गाड़ी कमजोर थी ___ खराब हो गई थी
जहां हमारे देश में गाड़ियां कहीं भी पलट जाती हैं और दूसरे किसी गाड़ी में बैठा व्यक्ति मर जाता है
ऐसी स्थिति में चुनाव अधिकारियों और हमारे विधायक ने, लोकतंत्र की गरिमा को, प्रजातंत्र की लाज को बचाने का बीड़ा उठाया था।
दूसरों पर निर्भर ना हो करके उन्होंने आत्मनिर्भरता का सहारा लिया था. विरोधियों उनके नियत पर प्रश्न चिन्ह नही लगाना चाहिए था. वह तो मशीनों को भी हेड क्वार्टर देर सबेर पहुंचा ही देते लेकिन लोगों की भीड़ ने उन्हें दबोच लिया।
यह भीड़ अफवाहों से प्रभावित थी। व्हाट्सएप पर सबसे तेज गति झूठ की होती है।
असत्य की यह गति हमारी मती तक हर लेती हैं। सोशल मीडिया का झूठ सूचना की इस क्रांति में जज्बातों और उन्मादो की आंधी ले करके आता है।
आधी सच्चाई और आधे झूठ की खिचड़ी हमारे साथ हमारे जज्बातों के साथ हमारी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करती है।
अगर वह गाड़ी हमारे विधायक की ना हो करके विपक्ष के विधायक की होती तो फिर राहुल की दीदी उनका बचाव कर रही होती। रवीश कुमार केंचुआ की सफाई पर न्यूज़ रिपोर्ट प्राइम टाइम पर चला रहे होते। और संबित पात्रा आलोचना कर रहे होते।
गाड़ी किसी की भी खराब हो सकती है, लिफ्ट देने वाली गाड़ी किसी भी पार्टी के विधायक की हो सकती थी। भारत जैसी आत्मनिर्भर एवं विश्व गुरु लोकतंत्र में ऐसा होना स्वाभाविक है।
एक विशाल लोकतन्त्र में गाड़ी के साथ छोटी मोटी घटना तो होती रहती है।
गाड़ियों का अनुमान और उनकी वास्तविकता का अंतर ही लोकतंत्र का सारांश है।
दीदी , ओ दीदी !! आप भूल गई क्या आप भी तो दो पहिए की गाड़ी से गिर गई थी, व्हील चेयर भी तो आपकी एक तरह की गाड़ी है, महाराष्ट्र में थ्री एमिगोस की महा आघाड़ी की गाड़ी पटरी पर से उतर रही है।
ट्रैक्टर गाड़ियों का भी तो डायवर्जन लाल किला की तरफ हो गया था, मित्रों अब तो किसान आंदोलन ट्रेंडिंग टॉपिक भी नहीं है।
रेलगाड़ियां किस ट्रैक पर हैं उसका पता नहीं और बुलेट ट्रेन कब आएगी उसका भी कोई अता पता नहीं। विकास भी तो डबल इंजन से ही होता हैं
सांकेतिक तौर पर हमारे नेता गाड़ियों को छोड़कर के साइकिल भी चलाते हैं। और मूड करता है तो हेलीकॉप्टर की सैर भी कर आते हैं।
एयर कंडीशंड रथ भी तो एक गाड़ी होती है, आडवाणीजी की परंपरा जो अब नड्डा आगे बढ़ा रहे हैं।
गाड़ियां हमारी संस्कृति का हिस्सा है।
और गाड़ी में ही तो पारी होती है!
नमस्कार लव यू तीन हजार।
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