विश्व गुरु भारत कैसा होगा? चलो एक चेकलिस्ट बनाए!

भारत हमारा देश!

एक समय था जब इस उपमहाद्वीप को सोने की चिड़िया कहा करते थे। भविष्य में भी एक युग आएगा जब हमारी पहचान फिर से विश्व गुरु के रूप में स्थापित होगी। हो जानी चाहिए। आज के समीकरण इस संभावना के कितने भी विपरित हो मगर ऐसा होकर रहेगा।

और ऐसा क्यों नहीं होगा? आखिरकार नास्त्रेदमस ने इसकी भविष्यवाणी की है! पूरी तो यह होकर रहेगी। 

लेकिन जब हम विश्व गुरु बन जाएंगे तो हम जानेंगे कैसे कि हम विश्व गुरु बन चुके हैं? हम यह कैसे जान पाएंगे कि हम सब ने मिलकर जो सपना देखा था वह पूरा हुआ या नहीं? यह एक यक्ष प्रश्न है जिसके जवाब के लिए धर्मराज युधिष्ठिर को स्वर्ग से धरती पर वापस अवतरित होना पड़ेगा। 


ध्यान रहे यह सिर्फ एक यक्ष प्रश्न है। यक्ष प्रश्न का मतलब यह नहीं होता कि यह एक कठिन सवाल है। सवाल तो सरल ही है।

विश्व गुरु की महिमा में पौराणिक शब्द अगर नहीं बोली जाएंगे तो महिमामंडन कैसे होगा? अगर हम समय यात्रा करके महाभारत काल में भी चले जाएं तो भी हम यही पाएंगे की यक्ष ने युधिष्ठिर से कोई कॉम्प्लिकेटेड सवाल नहीं पूछे थे। 

यक्ष के सवालों का उत्तर देने के लिए युधिष्ठिर को भी कोई ट्रिग्नोमेट्री या कैलकुलस का सहारा नहीं लेना पड़ा था। यक्ष भैया के सवाल और उनके जवाब यह सभी लॉजिक ड्रिवन थे। 

इसीलिए सत्य किंतु out-of-the-box उत्तर देने के बाद भी; सवाल जवाब में इंवॉल्व दोनों पार्टियों में एक कंसेंसस बन गया था। आपसी सहमति बन गई थी कोई भी विवाद नहीं हुआ था। 

उसी प्रकार भारत को विश्व गुरु कैसे बनाएंगे यह भी एक लॉजिक ड्रिवन सवाल है। इसका उत्तर भी दो पुड़िया कॉमन सेंस के सेवन के बाद खोजा जा सकता है। 

सोने की चिड़िया, हम जो सोने की चिड़िया हुआ करते थे, उस युग की हमारी जो सुनहरी यादें हैं वह कैसी रही होंगी? यह हमें नहीं पता। अब 2000 साल पहले की बात है, वह एक अलग युग था; एक अलग दौर था। अब हमारे पास उस दौर के बस अवशेष ही बचे रह गए हैं। (Archaeological dots)


भविष्य में जब हम विश्व गुरु बन जाएंगे तो फिर हम कैसे होंगे, क्या क्या कर रहे होंगे? हमारा आचार हमारा व्यवहार कैसा होगा? हम ऐसा नया क्या कर रहे होंगे जो हम आज नहीं कर रहे हैं? यह जानना हमारे लिए बहुत ही जरूरी है। सवाल पूछना जरूरी है। 

अगर विश्व गुरु हमें होना है तो यह प्रॉब्लम भी हमारी ही है। हम मिडिल क्लास लोगों की। क्योंकि मध्यमवर्ग तो सपनों में ही जीता है। लेकिन सपना पूरा कैसे होगा यही जानकारी वह नहीं जुटा पाता। 

मध्यमवर्ग आलसी होता है। इसलिए ऐसे सवालों के जवाब, उनकी जानकारी, प्लानिंग और एग्जीक्यूशन का जिम्मा वह किसी हायर अथॉरिटी को आउट सोर्स कर देता है। अब यह higher authority कोई भी हो सकता है।  

जैसे मध्यमवर्गीय मानव के कार्यालय का बॉस, पोंगा पंडित, मौलाना, धर्मगुरु, spiritual leader, social media influencer, student leader, local politician, youth icon, national leader, bollywood celebrity, dream११ के सपने बेचता क्रिकेटर, food blogger, रवीश कुमार, Tanmay Bhat, नरेंद्र मोदी, मेशो एप वाली किट्टू आंटी, राहुल गांधी, इत्यादि। कोई भी मतलब कोई भी। 

सिवाय middle class household के, middle class का higher authority,  जिसको thought leadership भी कह सकते हैं, कोई भी बन सकता है। 

Middle class अपने बारे में जो बात नहीं जानता, वह यह है कि वह "मिडिल" पहले होता है लेफ्ट या राइट उसके बाद होता है। मगर सपनों की बिसात ऐसी होती है कि वह एक मध्यमवर्गीय सरलमार्गी को सही सवाल पूछने से रोकती है।

सरल मार्गी होना ही मध्यम वर्गीय परिवारों के कठिनाइयों का कारण है। इसीलिए मानव जाति के इतिहास में हमने कभी भी किसी मिडिल क्लास रिवॉल्यूशन की कहानी नहीं सुनी। Middle class के militant हो जाने की तो कल्पना करना भी, एक समांतर ब्रह्मांड की बात लगती है। I'm not sure, हो सकता हो कि मिडिल क्लास मिलिटेंसी किसी पैरेलल यूनिवर्स में हमें मिल पाए। यकीनन ऐसी समांतर ब्रह्मांड में भौतिकी के सिद्धांतों में फेरबदल किया गया होगा तभी ऐसा कुछ इजाद हो पाया होगा। 

इसलिए मिडिल क्लास राजनीति में लेफ्ट और राइट के चक्रव्यूह में फसा रह जाता है। और वह इस ताने-बाने से बाहर नहीं निकल पाता। ऊपर से मध्यमवर्गीय इंसान भावुक भी होता है। इसीलिए संविधान की सुरक्षा में वह खुद को कभी लेफ़्टिस्ट पाता है और कभी धर्म की रक्षा के लिए वह राइटिस्ट हो जाता है। 

लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी, भावुकता के सागर में बहने के बाद भी, मध्यमवर्गीय इंसान जीता एक औसत जिंदगी ही है। 

१. वह नाना प्रकार के टैक्स चुकाता है
२. Loan और EMI का उठौना, जीवन पर्यंत अपने कंधों पर उठाता है
३. टीवी और सोशल मीडिया पर विज्ञापनों को देखकर अपनी जीवन शैली का आर्किटेक्ट बन जाता है, यदा-कदा कुछ डोनेशन भी उससे हो जाता हैं
४. अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा दिलाता है और अपना इलाज प्राइवेट अस्पतालों में करवाता है
५. मगर वह स्वयं के लिए और अपनी अगली पीढ़ी के लिए सरकारी नौकरी की चाह भी रखता है। ज्यादा उन्नति होने पर यह सरकारी नौकरी की चाह विदेश में शिक्षा और नौकरी में बदल जाती है। 

बस मध्यम वर्गीय परिवारों का जीवन यापन इन्हीं पंचशील के सिद्धांतों से चल रहा है। यही वह पंचसूत्र है जिन की आधारशिला पर विश्व गुरु भारत के स्वप्न का पेंटागन खड़ा है। 

मगर सरल मारगी मध्यम वर्गीय मिडिल क्लास वॉरियर के पास इन बेसिक सवालों के जवाब नहीं है। सबसे पहली बात कि यह विश्व गुरु का रिक्रूटमेंट कैसे होगा? दुनिया के कौन से विद्यालय में ऐसे अध्यापक की नियुक्ति होने वाली है? 

आज के दौर में इस दुनिया का विश्व गुरु कौन है? अगर कोई नहीं है तो फिर यह सीट कब से खाली है? भारत का विश्व गुरु फैकेल्टी में सिलेक्शन किन मापदंडों पर होगा? 

हम विश्व गुरु तो जरूर बनना चाहेंगे, मगर किसी परीकथा में नहीं, वास्तविकता में।

कम से कम, जहां फुटपाथ पर कोई परिवार न सोता हो। 
हर बच्चा भर पेट खाता हो, खूब खेलता हो, अच्छा पढ़ता हो। 

कम से कम जहां रसोई गैस का सिलेंडर और ऑक्सीजन का सिलेंडर की अविरल आपूर्ति होती हो। कम से कम, जहां रसोई के सिलेंडर में गैस होने की वजह से और अस्पताल के सिलेंडर में गैस ना होने की वजह से किसी की मृत्यु ना होती हो। 

हमें हमारी अपनी खुद की विश्वगुरु की परिभाषा खोजनी होगी। ताकि वो एक राजनैतिक जुमला न हो कर जन चेतना बन सकें। मध्यमवर्गी ही सही, सरल ही सही, मगर हमारी अपनी एक चेकलिस्ट होनी चाहिए। 

मुझे कमेंट में बताइए इस विश्वगुरू चेकलिस्ट में आप क्या क्या जोड़ना चाहेंगे

फ़्रीवास्तवजी
(Free Speech वाले)



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