बड़े साहब के पास भी नहीं। उनको भी उनके बॉस की सुननी पड़ती है।
लोकतंत्र है भाई। आजादी तो है, मगर आजादी के साथ एक लक्ष्मण रेखा भी है।
वैसे तो बड़े साहब के बॉस हम ही हैं। क्योंकि हमने उनको चुना है। लेकिन आलोचना करने में हमें इस लक्ष्मण रेखा का ध्यान भी रखना पड़ता है।
ऐसी ही आजादी को जॉर्ज ऑरवेल ने "freedom is slavery" कहा है।
एक समय था जब हमने "टू मच ऑफ डेमोक्रेसी" जैसी बात सुनकर के हंगामा खड़ा कर दिया था। इससे सरकार की छवि पर बुरा प्रभाव पड़ा.
मजबूरी में उन्हें ऐसी नीति बनानी पड़ी की छवि सुधारी जा सके। समय से चुनाव कराना मजबूरी हो गई।
अब हम चिल्ला रहे हैं वापस से आलोचना कर रहे हैं कि चुनाव नहीं कराने चाहिए थे।
एक तरह से देखा जाए तो हमने भी अपना स्टैंड में एक यूटर्न तो लिया ही है।
2 मई को चुनावी नतीजे आ चुके हैं। जिस किसी को सरकार बनानी थी बना ली उसने।
सकारात्मक बनो। Be positive।
चुनाव नहीं कराने चाहिए थे, ऐसा बार-बार मत बोलो।
क्योंकि अगर हमारे हुक्मरानों ने तुम्हारी इस बात से हिंट ले लिया और भविष्य में होने वाले चुनावों को पोस्टपोन करना शुरू कर दिया;
अगर ऐसा हो गया तो फिर तुम लोग ही चिल्लाते फिर होगे कि लोकतंत्र खतरे में है डेमोक्रेसी खतरे में है।
इसलिए टेक अ चिल पिल and be positive।
Ignore because "ignorance is strength" ये भी, जॉर्ज ऑरवेल ने कहा है!
औरों जैसे होकर के भी बाइज्जत रहना, यह एक कला है, यह एक जादूगरी है।
ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि पिछले कुछ दिनों से मैं सैटायर लिखने की कोशिश कर रहा हूं। इसलिए मैंने एक अलग नजरिए से कंगना राणावत के social media posts को देखना शुरू किया।
और मुझे यह जानकर हैरानी हुई की कंगना राणावत तो एक नॉटी लिबरल निकली। बाय गॉड की कसम।
She is an amazing satirist।
अगर आपको यकीन नहीं आता तो आप कल्पना करो कि कंगना राणावत की ट्वीट्स को Cyrus Brocha या भक्त बनर्जी पढ़ रहा है।
गंगा नदी को नाइजीरिया अफ्रीका में पहुंचा देना,
आग लगे कुआं खोदने की तर्ज पर ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए अम्रपाली का पौधारोपण करना,
विराट रूप जिसकी स्मृति धुंधली हो गई थी उसकी वापस से मेमोरी रिफ्रेश करना,
ध्यान मुद्रा की mocking करना,
अगर इन सब examples को, एक व्यंग कार की नजर से देखा जाए, तो आप पाओगे कि कंगना मैडम हमारे हुक्मरानों को ही कटाक्ष मारती हैं। और साहेब को पता भी नहीं चलता था।
ऊपर से उनकी जादूगरी तो देखो, जिस पर उन्होंने व्यंग्य किया उन्होंने उसको वाइ प्लस सिक्योरिटी दे दिया।
हां यह बात अलग है कि गलतफहमी भी हो जाती है और पोस्ट डिलीट हो जाते हैं और अकाउंट परमानेंटली सस्पेंड भी हो जाता है।
आगे बढ़ते हैं,
सोशल मीडिया पर वैक्सीन और ऑक्सीजन की कमी को लेकर के काफी भद पीट रही थी।
आंकड़ों को छुपाने और मुद्दों को दबाने की कोशिश ही समाचार बन जाती थी।
लेकिन इसी बीच, हमारे हुक्मरानों को एक राहत की ख़बर मिडिल ईस्ट से आईं। इजरायल, हमास और फिलिस्तीन के संघर्ष की वजह से मुद्दों का ऐसा डायवर्शन हुआ कि हमारा देश इजरायल और फिलिस्तीन के सपोर्टर्स में बट गया।
सवाल मत करो यही हमारी परंपरा है। सवाल करना ही है तो सवाल करो मगर जवाब की इच्छा मत रखो।
और अगर तुम्हारे सवाल से कोई विस्फोट हो जाए तो वैसे सवाल बिल्कुल भी मत पूछो।
जब Twitter profile पर direct message भेजने की सुविधा है, तो फिर गली गली मोहल्ले मोहल्ले में अपना सवाल पोस्टर पर छपवा कर चिपकाने की क्या जरूरत है???
It's so Old School !
Technology का सहारा लेना चाहिए।
जवाब पाने की इच्छा तो आप को वैसे भी नहीं की। खामखां हमारी पुलिस से 24 घंटे के अंदर 25 f.i.r. करवा दिया आपने।
The are already so overworked, उनके बारे में सोचना चाहिए आपको।
मेरे हिसाब से तो आलोचना और अभिव्यक्ति का सबसे उत्कृष्ट मॉडल प्रशांत भूषण वाला है। घर बैठे बैठे चने चबा कर, आलोचना भी हो जाती है, कोर्ट में लंबी चौड़ी बहस होती है, और फिर ₹1 की पेनल्टी के साथ केस का रिकॉर्ड टाइम में केस क्लोजर भी हो जाता है।
और वह एक रुपए की पेनाल्टी भी आलोचक अपनी जेब से नहीं देता।
इसलिए टि्वटर warrior होना एक बेहतर विकल्प है।
जैसी आपकी हैसियत (मतलब नंबर of followers)
तो जैसी आपकी हैसियत होगी वैसा आपको रिएक्शन मिलेगा।
रिएक्शन का स्पेक्ट्रम,
"Bot के retweets, like minded echo chamber, विरोधी खेमें के भक्तो से बहस, प्रोफाइल सस्पेंशन और suo moto संज्ञान के बाद कोर्टरूम में बहस"
इसी रेंज में होता हैं।
बाकी जो हैं जैसा हैं, आंकड़े तो आपसे छुपे नही हैं, उम्मीद हैं की अगले तीन सालों में इस विकट वर्ष को आप भूलो नहीं।
नमस्कार
फ़्रीवास्तवजी
(फ़्री स्पीच वाले)
१८ मई २०२१
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