Disclaimer : यह एक काल्पनिक कहानी हैं, इसका किसी घटना और व्यक्ति से कोई संबंध नहीं हैं।
यह कहानी हैं दो दोस्तो की नरेश और अमितेश। दोनो दोस्त भी थे और बिजनेस पार्टनर भी।
नरेश और अमितेश यह दोनों मिलकर के चाय पकौड़ी बेचने का धंधा करते थे।
उनके धंधे में एक इनोवेशन था। उनके चाय पकौड़े का डंका पूरे क्षेत्र में था।
भला चाय की चुस्की और पकड़ो के चटकारे में ऐसा क्या इनोवेशन डाला जा सकता है जिसकी वजह से धंधा एकदम चंगा चल सके। लेकिन इन दोनों बिजनेस पार्टनर्स की यही तो सबसे बड़ी खूबी थी।
लोग सिर्फ उनसे चाय और पकोड़े खाने के लिए नहीं आते थे बल्कि इन दोनों की ज्ञान की बातें सुनने भी आते थे।
स्वाद और पौष्टिकता एक तरफ, पकोड़े का असली स्वाद तो इनकी मिठास भरी बोली में था। जो ग्राहकों को अपनी तरफ आकर्षित करता था। उनको मंत्रमुग्ध कर देता था। भक्त बना देता था।
इनका धंधा जोर शोर से आगे बढ़ रहा था।
इनके बाप दादा ने विरासत में चाय पकौड़े के २ स्टॉल छोड़ कर के गए थे।
इन्होंने धंधे को इतना ग्रो किया कि अब इनके दो नहीं 302 टपरी शहर भर में हो गए थे। चाय पकौड़ी की इनकी फ्रेंचाइजी काफी सफल थी।
नरेश अमितेश को अपने व्यापार में वर्चस्व चाहिए था।
इसलिए वह अपने चाय पकौड़े के व्यापार का विस्तार दूसरे शहर में भी करना चाहते थे।
पड़ोस वाले शहर में उनकी कोई भी चाय की दुकान नहीं थी। उन्होंने वहां जाकर के शहर के तीन अलग-अलग जगहों पर अपने चाय पकौड़े की दुकान शुरू की।
लेकिन फिर भी चाय पकौड़ी की बिक्री कुछ खास नहीं थी।
उस शहर के लोग हेल्थ कॉन्शियस थे। वहां के लोग तले हुए पकोड़े ना खा कर के हेल्दी स्नैक्स खाते थे।
वहां के लोगों को चाय नहीं ब्लैक कॉफी पीना पसंद था।
वहां के लोग सलाद और मखाना खाते थे।
इसलिए नरेश और अमितेश ने कॉफी के खिलाफ दुष्प्रचार करना शुरू किया, ताकि लोगों की चाय के प्रति घर वापसी हो सके।
नरेश अमितेश इस नगर में अपना धंधा 3 टपरी से बढ़ा कर २०० से ज्यादा गलियों में पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध थे।
इसके लिए उन्होंने रोज १८ घंटे काम करना भी शुरू कर दिया।
चाय की बिक्री बढ़ाने का एक्शन प्लान चाय निर्माताओं, बीड़ी विक्रेता, तंबाकू पान मसाला वालो को बहुत पसंद आया। इन सभी ने, नरेश और अमितेश के बिजनेस प्लान में इन्वेस्ट भी किया।
तले हुए पकोड़े, शक्कर वाली चाय और सिगरेट बीड़ी पान मसाला का एजेंडा ले कर नरेश और अमितेश ने घर घर जा कर जागरूकता फैलाने का काम आरंभ किया।
कॉलेज के युवाओं को मुफ्त सिगरेट का प्रलोभन दिया गया। सिगरेट के साथ मीठी चाय और पकौड़े के स्वाद का महिमा मंडन किया गया। Palm oil के पुराणिक गुणों और सांस्कृतिक महत्व की जागरूकता फैलाई गई।
नरेश और अमितेश ने जागरूकता फैलाने के लिए रोड शो भी किए, रेलिया भी की, चाय, सिगरेट और पकौड़े लोगों के जीवनशैली का हिस्सा बने इसके लिए उन्होंने लोगों को मुफ्त में सैंपल बांटें।
पकौड़े खाने के लिए लोगों को पैसे भी दिए गए।
नरेश और अमितेश के कारोबार में एंजल इन्वेस्टर्स को यकीन था की यह कैश बर्न उनको बिजनेस में लाभ जरूर पहुचायेगा।
नरेश और अमितेश ने अपने मार्केटिंग कैंपेन में इस बात का ध्यान भी रखा था की लोगों को कॉफी, सलाद और हेल्थी स्नैक खाने से होने वाले नुकसान के बारे में ज्यादा से ज्यादा अवगत कराया जा सकें।
उनके खान पान के व्यवहार में परिवर्तन "आशोल poribortan" लाया जा सकें।
शुरुआती लाभ को देख कर नरेश और अमितेश को लगा की उनकी स्ट्रेटजी काम कर गई हैं। उन्होंने कॉफी के दुष्प्रचार की नीति को एग्रेसिवली आगे बढ़ाया।
कॉफी ओ कॉफी , चा खाबो?
उनका यह विज्ञापन दशो दिशाओं में दिखाई और सुनाई देने लगा।
आज नरेश और अमितेश के बिजनेस वेंचर की फाइनेंसियल रिपोर्ट आई है। इसने शहर में जहां एक समय उनका बिज़नेस ₹3000 प्रतिदिन कम आता था आज वह कमाई बढ़ करके ₹75000 प्रति दिन पहुंच चुकी है।
6 महीने में टर्नओवर में इस तरह का ग्रोथ phenomenal है। 25 गुना ग्रोथ एक बहुत बड़ी उपलब्धि हैं।
Turnover में 25 गुना वृद्धि यह बात सुनकर के नरेश और अमितेश के आकाओं को अपने बिजनेस डिसीजन पर काफी खुशी होनी चाहिए। यह लोग तो खुशी से नाच रहे होंगे।
लेकिन अंदर की बात कुछ और है।
धंधे में अपना पैसा लगाने वाले इन्वेस्टर्स ने नरेश और अमितेश की जम कर धुलाई की हैं। क्योंकि 75000 रुपया कमाने के लिए धंधे में उन्हें 75 लाख डालने पड़े थे।
In short, धंधा में बहुत बड़ा घाटा हुआ। लेकिन अभी भी नरेश और अमितेश का प्रचार तंत्र इसी बात पर निवेशकों को गुमराह करने का प्रयास कर रहा हैं की धंधे का टर्नओवर 25 गुना बढ़ चुका है।
सच्चाई यह है की इस नए geography में इनकी कंपनी का दिवालिया निकल चुका है, फिर भी लोगों को यह बताते फिर रहे हैं की कंपनी मुनाफे में है, turn over 25 times grow किया हैं।
Naresh aur amitesh का पूरा ध्यान इस नए शहर में बिजनेस को ग्रो करने पर था। पिछले 6 महीने से उनका पूरा का पूरा स्टाफ इस शहर में बस गया था ताकि इस शहर के लोगों को वह चाय और पकौड़े की लत लगा सके।
लेकिन वे सभी इस शहर में धंधा नहीं बढ़ा पाए, बढ़ा तो सिर्फ दिवालियापन।
अब खबर यह आ रही है कि उनके पुराने शहर में भी धंधा चौपट हो गया है। अब उनके शहर के लोग भी हेल्थ कॉन्शियस हो रहे हैं।
नरेश और अमितेश के होम टर्फ पर भी चाय पकौड़ी की संस्कृति पर गहरा आघात पहुंच चुका है।
अब यहां के ग्राहक भी पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में आकर के कॉफी को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बना रहे हैं। नारंगी स्चेजवान चटनी पकौड़े और फ्राइज की जगह अब सेव, संतरा, तरबूजा, पपीता, खीरा, बादाम, मूंगफली और मखाने का स्वाद लोगों को ज्यादा पसंद आ रहा हैं।
लोगों का taste bud पिछले 6 महीने में बदल चुका है। लेकिन, नरेश और अमितेश को शायद यह बात अभी भी समझ नहीं आ रही है।
क्योंकि नरेश और अमितेश को इस बात का पूरा घमंड हैं की मंदिर वाली गली में उनकी खानदानी चाय पकौड़े की दुकान अभी भी अच्छे से चल रही हैं। लोग मखाने और कॉफी को ज्यादा दिन नहीं चला पाएंगे, और वापस से चाय पकौड़े खाने जरूर आयेंगे।
रही बात इन्वेस्टर की तो निवेश करने वाले दूसरे बकरे फिर मिल जाएंगे।
कंपनी का दिवालिया भले ही निकल गया हो, मुनाफा तो अभी भी हैं! मंदिर वाली गली की दुकान में गो सेवा का दानपात्र अभी भी श्रद्धालुओं के चंदे से भरा ही रहता हैं।
फ़्रीवास्तवजी
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