Gangs of Online Donation - Oxygen, Black Market, Religious Institutions charity drive, Central Vista, Migrant workers



मित्रों, आपने कंगना राणावत का लेटेस्ट पोस्ट तो देख ही लिया होगा जिसमें वह ऑनलाइन क्राउडफंडिंग के लिए डोनेशन की अपील करने वाले सेलिब्रिटीस् को लताड़ लगा रही हैं।

कंगना राणावत क्रांतिकारी लिबरल विचारधारा की समर्थक, whistleblower और एक बहुत अच्छी व्यंगकार हैं।

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मेरे पास बहुत पैसे हैं;  फिर भी मैं ढेर सारे रूपए क्राउडफंड करना चाहता हूं ताकि उससे हम ऑक्सीजन खरीद कर सप्लाई कर सकें। ट्रक के ट्रक ऑक्सीजन खरीद सकें।

वही oxygen जिसका सिलेंडर जरूरत के वक्त आपको ब्लैक में ही खरीदना पड़ेगा.

₹5000, ₹10,000, ₹50,000 ₹100,000

काला बाजार में डिमांड के हिसाब से प्राइस ऊपर नीचे होता रहता है।

आज हम इसी gangs of online donations की बात करेंगे, जो हमारी भावनाओं और जेब के साथ खिलवाड़ करते हैं।



अप्रैल और मई का पूरा महीना oxygen cylinder, रेमडेसेविर की जुगाड़ में निकल गया। इस हफ्ते ताऊ टांके ने भी गुजरात महाराष्ट्र में तबाही मचा दी।

और अब सोशल मीडिया पर हमें ऑनलाइन डोनेशन मांगने वालों की सुनामी झेलनी पड़ रही है।

हमारा अटेंशन पाने के लिए, online donation कि पैसे उगलवाने के लिए, यह लोग हम तक TV और websites पर ऐड दे कर के पहुंच रहे हैं।

एक से बढ़कर एक फैंसी नाम वाले एनजीओ सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं।

कुछ तो जाने पहचाने नाम है मगर डोनेशन मांगने वालों में से कुछ जामताड़ा निवासी भी हो सकते हैं।

सोचने की बात है कि यह लोग जितना पैसा एडवर्टाइजमेंट पर खर्चा कर रहे हैं, उस पैसे से वह सीधे मदद भी पहुंचा सकते हैं।

Payment apps, क्रेडिट कार्ड डाटा कंसोलिडेटर्स, धार्मिक संस्थान, हर कोई किसी ना किसी NGO के साथ कोलैबोरेट करके हमसे डोनेशन की अपील कर रहा है।

जब लोगों तक तत्काल राहत पहुंचाने की जरूरत है, तब यह लोग ऑनलाइन डोनेशंस के द्वारा क्राउडफंडिंग क्यों कर रहे हैं। विज्ञापन में ढेर सारा पैसा खर्च कर रहे हैं.

इससे मदद किसको मिलेगी कैसे मिलेगी इसकी कोई जवाबदेही नहीं रहती है।

खैर, वह तो पीएम केयर्स फंड की भी नहीं।
PM Cares is Ramadhir Singh of online donations।

लोग जब दूध के जले हो तो छाछ भी फूंक-फूंक कर पीते हैं।

शायद इसीलिए भारत के सबसे बड़े सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर मोदी जी ने;  इस साल, अब तक पीएम केयर्स फंड में डोनेशन करने की कोई अपील भी नहीं की।

As a proactive and visionary leader उन्होंने हमें 1 साल पहले ही आत्मनिर्भर होने का ज्ञान दे दिया था। उसी ज्ञान की वजह से तो हम इस कठिन समय से उबर पा रहे हैं।

प्रॉब्लम है ऑक्सीजन की सप्लाई चैन का।

हम कितना भी डोनेट कर ले, जिस किसी को भी ऑक्सीजन सिलेंडर चाहिए होगा उसको कालाबाजारी को अपनी जेब से पैसे देने हीं होंगे।

ऑक्सीजन की सप्लाई चेन पर राज्य सरकार का नहीं कालाबाजारयो का नियंत्रण है।  इस बात की कोई गारंटी नहीं कि हमारे डोनेशन का पैसा किसी विश्वसनीय हाथ में जाएगा या नहीं।

हमारा दान या तो किसी कालाबाजारी से सामान खरीदने में यूज होगा या फिर कला बाजार यों की सप्लाई चेन में डोनेट होगा।

आज ऑक्सीजन की किल्लत है कल किसी और चीज की रहेगी। मगर काला बाजार का nexus यही था और यही रहेगा।

काला बाजार कहीं नहीं जाएगा, कला बाजार अनादि काल से हमारे देश में है। क्योंकि शायद वह अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा electoral bonds की खरीद में लगाते होंगे।

Unofficially, कालाबाजारी भारतीय संस्कृति का हिस्सा है।

शायद इसीलिए ऑक्सीजन कंसंट्रेटर को सरकार अति आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट में नहीं डाल रही। क्योंकि काला बाजार की खरीद फरोक्त पर जीएसटी नहीं मिलता।

अगर ऑक्सीजन को अति आवश्यक वस्तुओं की सूची में डाल दिया जाए तो जनता तक यह गलत पैगाम जाएगा कि सरकार ब्लैक इकॉनमी की समर्थक है।

और यह सरकार की गलत छवि के लिए अच्छा नहीं।

ऊपर से,

इस दौर में धार्मिक संगठनो को तो बिलकुल भी चंदा नहीं माँगना चाहिए।

हमने अपनी श्रद्धा से आप सभी को जिंदगी भर बिना किसी आपदा के वक़्त भी चढ़ावे चढ़ाएं हैं.

हमारे सेठ लोगों ने तो आपको टैक्स सेव करने के लिए दिल खोल कर दान दिए हैं.

आपको साल भर ऐसे ही इतनी कमाई होती रही हैं.

आपके खजाने वैसे ही ओवरफ्लो करते हैं.
आप उसी से मदद पहुचाओ. ऑनलाइन विज्ञापन मत दो प्लीज।

अच्छा, शायद lockdown की वजह से आप तक श्रद्धालु नहीं पहुंच पा रहे हैं. आपकी भी cash flow block हो गया होगा।  

अगर ऐसा हैं तोह धार्मिक संगठनो को यह बात खुल कर बोलनी चाहिए,

transparency नाम का कोई चीज है कि नहीं?

वैसे भी धार्मिक स्थलों को समझना चाहिए की हमारे देश की जनता धार्मिक स्थलों के भवन निर्माण के लिए ज्यादा दिल खोल कर डोनेट करती करती हैं.

जिससे आप न्यू जर्सी तक में भारत से मजदूर भेज कर भव्य भवन का निर्माण कर लेते हो।

हमारी पब्लिक ;

सरकार, संसद और न्यायालय पर उच्च कोटि का दबाव बनाने की छमता रखती हैं,  ताकि state-of-art-structures-of-religious-importance खड़े किये जा सकें.   

इसलिए RELIGIOUS-CORPORATES को अगर सच में cash flow कि दिक्कत हैं तो वह भवन निर्माण के नाम पर ही चंदा मांगे।

उससे ज्यादा कलेक्शन होगा।

आगे बढ़ते हैं

हमारे सरकारों ने अभी भी प्रचार तंत्र का दामन पकड़ रखा हैं. जरुरी भी हैं। नहीं तो प्रचार तंत्र के उद्योग में पत्रकारिता का उदय हो जायेगा तो देश में भूकंप आ जायेगा।   

अगर सरकारों के पास प्रचार मैं पैसे खर्च करने का Obligation नहीं होता तो इतना पैसा बचता की सिस्टम को देशवासियों से और विदेशियों से किसी से भी आर्थिक मदद मांगने की जरूरत नहीं पड़ती।

हमारी सरकार एक तरफ से विदेशों से मदद ले रही है। दूसरी तरफ राजधानी कि सेंट्रल विस्टा का काम जोर शोर से चल रहा है। क्योंकि हमारी सरकार इस साल, प्रवासी मजदूरों की दिहाड़ी को लेकर के काफी संवेदनशील है।

Sarkar हमारे टैक्स के पैसे से ही तो देश चलाती है। नेताओं और VIPs के AIIMS,
VVIPs के लिए मेदांता, और आम आदमी के लिए जिले के सदर अस्पताल में सारी सुविधाएं हो उसका पैसा हमारी टैक्स से ही तो आता है।

सिस्टम पर लोड ना पड़े इसलिए मध्यम वर्गीय परिवार मेडिकल इंश्योरेंस भी लेता है।

इसी उम्मीद के साथ कि सरकारी अस्पताल का मुंह ना देखना पड़े।

लेकिन आज हेल्थ इंश्योरेंस और उस पर खरीदा गया टॉप मुझे व्यर्थ दिखता है।

क्योंकि इस वैश्विक महामारी में इलाज कराने के विकल्प सीमित है। और black market से खरीदी गई ऑक्सिजन का इंश्योरेंस से रिफंड भी नही मिलेगा।

Tax and insurance premium, यह भी तो एक तरह का डोनेशन ही था जो हमने दिया।

मुझे सकारात्मक होना चाहिए क्योंकि सरकार के विचारक और प्रचारक ऐसा कहते हैं। मेरी तरफ से सकारात्मकता बस यही है की मैं यह बात कह पा रहा हूं और आप यह बात सुन पा रहे हो।

जरूरतमंदों की मदद करें, और फर्जी डोनेशन मांगने वालों से सावधान रहें।

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