Gangs of Online Donation

Gangs of Online Donation! (ऑनलाइन डोनेशन मांगने वालो का गैंग)

दोस्तों आज हम गैंग्स ऑफ़ ऑनलाइन डोनेशन की बात करेंगे। ऑनलाइन डोनेशन मांगने वाले ऑनलाइन एड्स के द्वारा हम तक पहुंच कर लोगों की मदद पहुंचने का पैगाम दे रहे हैं. बड़ी विडम्बना हैं की जीवन रक्षक दवाये और ऑक्सीजन सिलिंडर अभी भी सभी तक नहीं पहुंच पा रही हैं; लेकिन यह सब लोगों तक पहुंचाने का दवा करने वाले हमारे मोबाइल स्क्रीन तक जरूर पहुंच रहे हैं. 

ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सप्प ग्रुप्स और अन्य प्लेटफार्म आज की डेट में लोगों की आत्मनिर्भर हेल्पलाइन पोर्टल में तब्दील हो गए हैं. बिना कोई डोनेशन लिए इनफार्मेशन और जुगाड़ की जद्दो जहत लोग लोगों तक पंहुचा रहे हैं. लेकिन ऑनलाइन विज्ञापन दे कर यह नाना प्रकार की संस्थाएं हमें दान देने को क्यों प्रेरित करती हैं? 



ऑनलाइन विज्ञापन में उन्होंने खर्चा किया हैं; तो वही पैसे मदद के लिए खर्च क्यों नहीं किये? जितनी अटेंशन इंजीनियरिंग आप मेरा ध्यान पाने के लिए अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लगा रहे हो; उतना effort आप अपने स्तर पर भी खर्च करके लोगों तक तत्काल राहत पंहुचा सकते हो? 

ऑक्सीजन सिलिंडर्स, वेंटीलेटर, वैक्सीन और हॉस्पिटल्स के लिए हमने Mother of online donations; PM CARES में दिल खोल कर दान दिया था. सरकार की छवि लिए यह सरकारी फण्ड हमें धोका दे दिया; तो हम ऐसे किसी को भी ऑनलाइन डोनेशन कैसे दे सकते हैं? 

ऐसी स्तिथि में धार्मिक संगठनो को तो बिलकुल भी चंदा नहीं माँगना चाहिए। हमने अपनी श्रद्धा से आप सभी को जीवन पर्यन्त बिना किसी आपदा के वक़्त भी चढ़ावे चढ़ाएं हैं. हमारे fellow ultra rich patriots ने आपको टैक्स सेव करने के लिए दिल खोल कर दान दिए हैं. आपको साल भर ऐसे ही इतनी कमाई होती रही हैं. आपके खजाने वैसे ही ओवरफ्लो करते हैं. आप उसी से मदद पहुचाओ. स्पॉन्सर्ड सोशल मीडिया मार्केटिंग मत करो प्लीज। 

शायद lockdown की वजह से आप तक श्रद्धालु नहीं पहुंच पा रहे हैं. आपकी भी बैलेंस शीट stressed हो गयी होगी। यह बात खुल कर बोलनी चाहिए, transparency के साथ। लोगों तक मदद पहुंचने की इमोशनल अपील नहीं करनी चाहिए। 

वैसे भी धार्मिक स्थलों को समझना चाहिए की हमारे देश की जनता धार्मिक स्थलों के भवन निर्माण के लिए ज्यादा दिल खोल कर डोनेट करती करती हैं. हमारी पब्लिक ; सरकार, संसद और न्यायालय पर उच्च कोटि का दबाव बनाने की छमता रखती हैं,  ताकि state-of-art-structures-of-religious-importance खड़े किये जा सकें.    

इसलिए RELIGIOUS-CORPORATES को अगर सच में पैसों का ही shortage हैं तो वह भवन निर्माण का ही चंदा मांगे। उससे ज्यादा कलेक्शन होगा। 

अगर आप सच में लोगों तक मदद पहुंचाने का ही उद्देश्य रखते हैं तो फिर देश-विदेश में नयें धार्मिक स्थलों की जो निर्माण योजना हैं; उसको कुछ साल के लिए स्थगित कर दें। बिना अपने चंदो का कटोरा फैलाये लोगों की मदद करें. यह संभव हैं, financial discipline चाहिए बस। Align your priorities!

आत्मनिर्भर होना चाहिए ऐसे धार्मिक स्थलों को.   

आपको समझना चाहिए की आज भी ऑक्सीजन concentrators और उससे जुड़े मेडिकल equipment essential services में शामिल नहीं हैं। लेकिन कंस्ट्रक्शन हैं,  इसलिए construction कार्य बेरोकटोक कराई जा सकती हैं. 

टेक्निकली प्रवासी मजदुरों की जीविका ऐसे construction एक्टिविटीज पर डिपेंडेंट हैं. 

दूसरी तरफ ऑक्सीजन सिलिंडर ब्लैक इकॉनमी का हिस्सा हो गए हैं. मतलब सरकार को सिलिंडर्स की बिक्री पर GST भी नहीं मिल पा रहा. ऐसे में अगर ऑक्सीजन को अति आवश्यक वस्तुओ की सूची में दाल दिया जाए तो जनता तक यह पैगाम जायेगा की केंद्र सरकार black economy की व्यवस्थाओ की समर्थक हैं. और यह केंद्र सरकार की गलत छवि के लिए अच्छा नहीं हैं. 

रही बात काला बाज़ारी रोकने की तो वह तो राज्यों का मुद्दा हैं; उनका मूड करेगा तोह वह निपट लेंगे।   

एक Payment Application ने डोनेशन के लिए मोटीवेट करने का नया तरीका निकला। आप जितना डोनेट करोगे उतना हम भी डोनेट करेंगे। we-will-match-your-contribution! 

इस तरह वह १४ करोड़ डोनेट करेंगे. क्यों भाई? आप सात करोड़ तत्काल में डोनेट क्यों नहीं कर देते? शायद इससे यूजर इंगेजमेंट नहीं हो पायेगा इसलिए. क्योंकि डोनेशन के नाम पे आपको हमें अपने प्लेटफार्म पे engaged करके रखना हैं. 

वैसे भी ऑक्सीजन का त्राहि माम् हैं. आपको तत्काल मदद पहुचानी चाहियें। 

एक कंपनी जिसको लोगों ने अपना कीमती डाटा वैसे ही डोनेट कर रखा हैं. बस उस डोनेशन के एक छोटा सा हिस्सा आप reward points को रिडीम करके ऑक्सीजन डोनेट कर सकते हो. आपके डाटा को बेच कर वह 90's बॉय band चला रहे हैं। मैं तो यही कहूंगा की उनसे आप पहले अपने डाटा की सही कीमत की bargaining करो। 

अगली प्रॉब्लम हैं ऑक्सीजन के सप्लाई चैन की. आप कितना भी डोनेट करलो, पुरे भरोसे के साथ की आप जिसको डोनेट कर रहे हो वह एक विश्वसनीय कॉर्पोरेट ही हैं कोई जामतारा निवासी नहीं।  लेकिन हमें इस बात पर सवाल उठाना चाहिए की इस बात की क्या गारंटी हैं की ऑक्सीजन का end user को ऑक्सीजन बिना पैसे खर्च किये मिल ही जायेंगे। कड़वा सत्य तोह यह हैं की ऑक्सीजन की supply chain पर काला बाजारियों का कब्ज़ा हैं.

कुल मिला जुला कर के मुझे यह पूरी donation वाली economy नकारात्मक लगती है। हां मुझे सकारात्मक होना चाहिए क्योंकि ऐसा सरकारी विचारक एवं प्रचारक कहते हैं। 

लेकिन मेरी मन में जो सवाल है उनकी अभिव्यक्ति करना भी अनिवार्य है। 

हम जो पैसे डोनेट करेंगे उस पैसे से या तो कोई जामताड़ा में अय्याशी कर रहा होगा या फिर ऑक्सीजन जैसे उत्पाद कालाबाजारियों से खरीद रहा होगा या फिर उन्हीं कालाबाजारियों की सप्लाई चेन में डोनेट कर रहा होगा। 

गलती मीडिया की भी है क्योंकि उसने अभी तक मुझे किसी भी ऐसे व्यक्ति का बाइट नहीं दिखाया जिसने कैमरे के सामने यह बताया हो कि उसे बिना जेब ढीली किए ऑक्सीजन मिला और वह स्वस्थ हो गया। ऐसे सकारात्मक समाचार मुझे तो देखने को नहीं मिले। 

कालाबाजारियों के खिलाफ भी कोई सख्त कार्यवाही होती हुई नहीं दिख रही। चाहे केंद्र की तरफ से या राज्य सरकारों की तरफ से। Most probably, 
कालाबाजारियों की कमाई का एक हिस्सा सिस्टम में Electoral Bonds के रूप में वापस आएगा। 

नकारात्मकता और सकारात्मकता के ताने-बाने में, सरकारों ने अभी भी प्रचार तंत्र का दामन पकड़ रखा हैं. जरुरी भी हैं। नहीं तो प्रचार तंत्र के उद्योग में पत्रकारिता का उदय हो जायेगा तो देश में भूकंप आ जायेगा।    

अगर सरकारों के पास प्रचार में पैसे खर्च करने का Obligation नहीं होता तो इतना पैसा बचता की सिस्टम को देशवासियों से और विदेशियों से किसी से भी आर्थिक मदद मांगने की जरूरत नहीं पड़ती। 

अगर आपने अपनी जेब से डोनेशन नहीं दिया है तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपने डोनेशन नहीं दिया है। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आपने टैक्स दिया है। सरकार हमारी टैक्स के पैसे से ही तो देश चलाती है। Health care भी तो देश चलाने की बजट का हिस्सा है। सिस्टम पर लोड ना पड़े इसलिए हमने मेडिकल इंश्योरेंस भी लिया है। इस उम्मीद के साथ कि हम सरकारी अस्पताल में ना जा करके प्राइवेट मैं बेहतर इलाज करा सके। 

लेकिन आज हेल्थ इंश्योरेंस और उस पर खरीदा गया टॉप अप मुझे व्यर्थ दिखता है। क्योंकि इस वैश्विक महामारी में इलाज कराने के विकल्प सीमित है। और black market से खरीदी गई ऑक्सिजन का इंश्योरेंस से रिफंड भी नही मिलेगा। 

मेंरी तरफ से सकारात्मकता बस यही है की मैं यह बात लिख पा रहा हूं और आप यह बात पढ़ पा रहे हो। 

Freevastavji
(फ़्री स्पीच वाले)



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