पुड़िया vs पिल्स | ayurveda verses modern medicine


सकारात्मकता दिखाने के लिए आक्रामक भी होना पड़े तो होना चाहिए! नहीं तो लोग आपको सीरियसली नहीं लेंगे। बीमारी के उपचार से ज्यादा हकीम वैद्य डॉक्टर का प्रचार भी जरुरी होता हैं.

नीम ए हकीम खतराइ जान

अर्थात हे हकीम नीम वृक्ष के निकट मत जाओ, तुम्हारे लिए सिचुएशन विकट हो सकता हैं. तुम्हारी जान को खतरा हो सकता हैं. क्योंकि लड़ाई आयुर्वेद और एलोपैथ की हैं.

आजकल सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी हुई हैं की आयुर्वेद और एलोपैथ में बेहतर कौन हैं? और हमारे समय की विडम्बना यह हैं की हमें न चाहते हुए भी सोशल मीडिया पर अपना पक्ष रखना ही होता हैं. प्रत्यक्ष हो या परोक्ष हो पक्ष रखना नैतिक दायित्व हो जाता हैं.

इसलिए न चाहते हुए भी लोगों को चर्चा में कूदना ही पड़ता हैं, चाहे उस विषय पर चर्चा के लिए आपके पास appropriate qualification हो या न हो. "बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना" बनना ही पड़ता हैं.

अगर आप कोई साइड नहीं लोगे तो सोशल मीडिया पर आपकी स्थिति महाभारत के बर्बरीक जैसी हो जाएगी। अपनी असमंजस की वजह से महाभारत शुरू होने से पहले ही उसका वध हो गए था.

लेक़िन आप ही बताओ क़ि हमारे ओपिनियन से क्या फ़र्क़ पड़ने वाला हैं?

पौराणिक बातों को छोड़ कर present में आते हैं; प्राचीन आयुर्वेद और मॉडर्न मेडिकल साइंस के बीच यह जो बहस छिड़ी हुई हैं, ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही. जैसा की पिछले कुछ सालों से होता आ रहा हैं, सोशल मीडिया के विवादों में धर्म का perspective तो आना ही हैं. यह अब सोशल मीडिया का अघोषित सिद्धांत बन गया हैं!

इसलिए, यह युद्ध अब चिकित्सा पद्धतियों की उपयोगिता कम और धर्मयुद्ध ज्यादा होता जा रहा हैं.

अगर धर्म युद्ध में आप किसी भी तरफ नहीं हो तो आप सबसे बड़े अधर्मी हो!

इसलिए मेरा स्टैंड यह हैं की आयुर्वेद बेहतर हैं. Because Prevention is better than Cure! निवारण उपचार से बेहतर होता हैं!

आयुर्वेद में निवारण के नुस्खे ज्यादा हैं, और एलोपैथ उपचार बेहतर पद्धति हैं जो रिसर्च के आधार पर होती हैं.

आयुर्वेद Prevention हैं. Ayurveda is way of living!
लेकिन अगर निवारण में आप फेल हो गए तो उपचार करना ही पड़ेगा। वहां Modern Medical Science ही बेहतर हैं. Modern Medicine तत्काल cure हैँ। तत्काल उपचार हैं.

सीधी सी बात हैं, अगर कोई एक बेहतर हैं तो इसका यह मतलब नहीं की दूसरा वाहियात हैं. दोनों अपनी जगह सर्वोत्तम हैं!

एक साधारण मिडिल क्लास परिवार बदहाल रहता हैं; सरकारी हॉस्पिटल की बदइंतज़ामी और प्राइवेट हॉस्पिटल वाले जो लूट पाट मचाते हैं, उससे।
इसी वजह से मिडिल क्लास आदमी सोशल मीडिया पर आयुर्वेद को सपोर्ट करता हुआ पाया जा रहा हैं. मगर माध्यम वर्गीय लोगों को यह बात समझ नहीं आती की दूकानदार लूटेरा हो तो इसका यह मतलब नहीं की दूकान में बिकने वाला निरमा का साबुन और पार्ले-जी का बिस्कुट भी ख़राब हैं.

मगर लोग सीस्टम के फेलियर को साइंस का फेलियर समझ रहे हैं. मगर जब इमरजेंसी की सिचुएशन आये तो मॉडर्न मेडिकल साइंस आपको तत्काल रहत देने में ज्यादा सक्षम हैं. इसमें कोई दो राय नहीं!

आयुर्वेदाचार्य आचार्य बालकृष्ण तक को AIIMS में भर्ती होना पड़ा था, जब सिचुएशन आउट ऑफ़ कण्ट्रोल हो गयी थी. वहां एलोपैथ ही उनके लिए जीवन रक्षक हुआ था. एलोपैथ डॉक्टर्स भी लोगों को बेहतर जीवन शैली, योग और आयुर्वेदिक नुस्खे prescribe करते हैं.

मॉडर्न मेडिकल साइंस के दवाइया उन्ही रसायनो से बनती हैं जो प्राकृतिक रूप से जड़ी बुटियों में पाए जाते हैं. सही मायने में यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं.

लेकिन, सोशल मीडिया का यह विवाद वैज्ञानिक चर्चा न होकर अब राजनैतिक मुद्दा बन गया हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण हैं. रामदेव बाबा की बहुत सी बातें अपत्तिजनक हैं. खासकर के रामदेव बाबा का यह रवैया जिसमे वह ऐसा प्रस्तुत कर रहे हैं जैसे योग और आयुर्वेद पर उनका एकाधिकार हो.

बाबाजी सत्ता पक्ष के करीबी हैं; मगर वह इस निकटता का गलत इस्तेमाल करते हुए भी देखे जा रहे हैं. और उनको मिलने वाला व्यापारिक लाभ भी प्रत्यक्ष हैं.

इन सभी बातों पर चिंतन होना चाहिए।

फ़्रीवास्तवजी
(फ़्री स्पीच वाले)
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