मेरे मित्र हैं; गजेन्द्र वर्मा। गजेन्द्र ज्ञान का ग्लेशियर हैं। क्योंकि गजेन्द्र से ज्ञान की सरिता बहती रहती हैं। इसी लिए सारे मित्र उन्हें ज्ञानी गजेन्द्र कह कर सम्बोधित करते हैं। गजेन्द्र भूगोल के बहुत बड़े ज्ञाता और अध्यापक भी हैं।
मेरा सौभाग्य हैं की ज्ञानी गजेन्द्र मेरे पड़ोसी और घनिस्ट मित्र हैं। गजेन्द्र का दुर्भाग्य था की वह IAS के साक्षात्कार में सफल नहीं हो पाए। गजेन्द्र के साथ बैठ कर मुझे दुनिआ की अजब गजब जानकारियां मिलती रहती हैं।
जैसे मजुली दुनिया का सबसे बड़ा नदी का टापू हैं जो असम के ब्रह्मपुत्र में पाया जाता हैं। या फिर नॉर्वे में कैसे मध्यरात्रि में भी सूर्य चमकता हैं। पश्चिमी घाट के पहाड़ो की समान्तर रेखाएं हमें यह बताती हैं की लाखों साल पहले यह धरती समुद्र के अंदर थी। वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर उनके लेख अखबारों में भी छापे जा चुके हैं।
ऐसी ढेरो जानकारिया मुझे ज्ञानी गजेन्द्र से मिलती रहती हैं।
भूगोल के साथ साथ उनको खगोल में भी रूचि हैं; और उनके अंदर का साहित्यकार यदा कदा सक्रिय हो जाता हैं। ज्ञानी गजेन्द्र की प्रेम कहानी शुरू होती हैं फेसबुक पर डाली गयी एक कविता से।
उस कविता का सारांश यह था :-
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एक दिन ब्रह्मांड के रचयिता ब्रह्मा के कार्यालय में बृहस्पति को बुलाया जाता हैं। बृहस्पति को बताया जाता की आकाशगंगा में एक तारे की पोस्ट खाली हैं।
बोर्ड ने यह फैसला लिया हैं की; एक नया तारा स्क्रैच से बनाने से बेहतर होगा की आपको एक ग्रह से एक तारे की पदोन्नति ऑफर की जाएं। क्योंकि आपके पास हाइड्रोजन का भंडार हैं, आपको कम समय में एक तारे में परिवर्तित करना सफल होगा। शुरुआत में आप सूर्य के समीप एक छोटे तारे के रूप में जाने जाओगे; लेकिन कुछ सौ करोड़ साल में जब सूर्य लाल हो जाएगा तब आप एक फुल कैपेसिटी स्टार हो जाओगे।
ब्रह्माण्ड के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स को एक तगड़ा झटका लगता हैं जब इस ऑफर को बृहस्पति ठुकरा देते हैं।
बृहस्पति ने बताया की अगर मैं तारा बन जाऊंगा तो मुझसे इतनी ऊष्मा पैदा होगी की अद्भुत सी दिखने वाली पृथ्वी पर जीवन समाप्त हो जायेगा। हरे नीले और सफ़ेद रंग की आभा लिया यह छोटा सा गोला जहाँ मनुष्य अध्यात्म और हमारे अस्तित्व की खोज करेगा, कल्पना करेगा, प्रेम और हर तरह की भावनाओ को अपने अंदर समेटेगा, जहाँ जीवन के नए नए स्वरुप देखने को मिलेंगे, सभ्यताएं जन्म लेंगी, कितना कुछ होगा; वह सब इस निर्णय से समाप्त हो जायेगा।
मुझे धरती से कुछ नहीं मिलने वाला। लेकिन इसका मतलब यह नहीं की मैं धरती को तबाही दूँ। मुझे धरती से प्रेम हैं; एक unconditional प्रेम।
मैं धरती के करीब नहीं जा सकता, मैं उसे नहीं पा सकता; यह सत्य हैं। लेकिन मेरी वजह से उसका अस्तित्व भी तबाह नहीं हो सकता। मेरे गुरुत्व से धरती की तरफ जाने वाले खगोलीय पिंड धरती पर नहीं जायेंगे; जिससे वहां जीवन पनपेगा।
जो छोटे मोटे खगोलीय पिंड के टुकड़े जायेंगे वह प्रेम का प्रतिक टूटा तारा कहलायेंगे! जिसे देख कर प्यार में पगलाए युवक युवती "Make a wish" चिल्लायेंगे और रोमांचित हो जायेंगे।
इसलिए मुझे कोई गुमनाम तारा नहीं बनना, मैं एक ग्रह ही भला। मुझे प्रेम का प्रतिक भी नहीं बनना, क्योंकि मैं मेरा प्रेम unconditional हैं।
इसी वजह से ग्रीक हो या हिन्दू माइथोलॉजी बृहस्पति के विवेक का सम्मान हर जगह होता हैं।
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ज्ञानी गजेन्द्र का यह महाकाव्य फेसबुक पर वायरल हो गया। ज्ञानी गजेन्द्र को बधाइयाँ और तारीफें मिलने लगी। अब ज्ञानी भैया हमारे फेसबुक पर काफी ज्यादा पाए जाने लगे। फेसबुक का असली इस्तेमाल और उपयोगिता उन्हें समझ आने लगी।
किसी ज़माने में जो व्यक्ति सोशल मीडिया की आलोचना करता था; आज वह इंसान अपने समय का एक बड़ा हिस्सा ऑनलाइन बिताने लगा। आज वह स्वयं अपना सोशल मीडिया clout बढाने में लगा हुआ हैं।
और यहाँ से शुरू होती हैं ज्ञानी गजेन्द्र की प्रेम कहानी। जिसे हम अगले एपिसोड में जानेंगे।
-फ़्रीवास्तवजी
(फ़्री स्पीच वाले)
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