स्टार वार्स की दुनिया - Star Wars with a different perspective


मित्रों, क्या आपने स्टार वार्स देखीं हैं? अरे वही जेडी योद्धाओ वाली फिल्में जिसमे वह टूबलाइट जैसी तलवार से लड़ाई करते हैं।  लाइट सेबर बोलते है उस तलवार को। 


आपने इसकी फिल्में देखीं नहीं भी होगी तो भी हॉलीवुड के किसी ना किसी फिल्म या सीरीज में इसके जिक्र से आप रूबरू तो हुए ही होंगे। स्टार वार्स को अघोषित रूप से हॉलीवुड की लोक कथाओ का दर्ज़ा मिल चूका हैं। यह अपने में एक महा गाथा हैं। 


कितने फिल्म निर्माता अपने कंटेंट में स्टार वॉर्स का संदर्भ दे कर, अपना घर चला रहे हैं। जैसे शोले पर चुटकुले बना कर भारतीय कॉमेडियंस अपना घर चला पाते हैं। 


स्टार वॉर्स की पूरी कहानी को बताने के लिए नौ और दो, ग्यारह फ़िल्मों के जरिए बयालीस साल लग गए। तब जा कर ब्रह्माण्ड में संतुलन बन पाया। स्टार वॉर्स की पहली फिल्म 1977 में आई थीं और इसकी आखिरी फिल्म 2019 में आयी थी।  


शोले (1975) भी तो उसी दशक में  रिलीज़ हुई थी!


स्टार वार्स की दुनिया हमारी दुनिया से बहुत अलग हैं। वैसे तो मुझे अपने देश दुनिया के इतिहास में कोई ख़ास रूचि नहीं थी ; लेकिन दूर बहुत दूर की एक गैलेक्सी का इतिहास अब मुझे कण्टस्थ्य हो गया हैं।


इसके सारे किरदारों का बायो डाटा मेरे पास हैं।



वहां के लोगों की दशा पाकिस्तान की जनता से काफी मेल खाती हैं। डेमोक्रेसी हो या तानाशाही उस गैलेक्सी के लोग बदहाली में ही जीवन जीते हैं।


वहां की डेमोक्रेसी अपने करप्शन की वजह से बर्बाद हुई; जब तानाशाही आयी तो लोगों का जीवन और भी बदहाल हो गया। तानाशाही को हरा कर फिर से नया रिपब्लिक बना जो फिर कुछ सालों में बिखर गया।  


लेकिन जो भी हो, स्टार वार्स की दुनिया में विकास तो बहुत हुआ हैं। उन्होंने ऐसी टेक्नोलॉजी बना दी हैं की उनकी गाड़िया जमीन से सवा तीन फुट ऊपर चलती हैं। सोचों इसके कितने फायदे हैं।  


उस गैलेक्सी के PWD विभाग के लोगों के लिए बहुत राहत हैं। सड़क निर्माण की जरूरत ही नही हैं, और गाडियां अच्छा माइलेज देती हैं! जब सड़क नहीं तो ब्रॉडबैंड या गैस की पाइपलाइन बिछाने के लिए सड़क की खुदाई भी नहीं होती। पेट्रोल डीजल भी निहायती सस्ता हैं उस दुनिया में।    


गाड़ियों का हवा से बातें करना उनके लिए एक आम बात हैं। उनके विमान प्रकाश की गति से उड़ सकते हैं। उनकी गाड़ियां हवा से नहीं लाइट से बातें करती हैं।  


आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस उनका बहुत ही एडवांस स्टेज पे हैं। इतना एडवांस कि उनके रोबोट्स में रियल ऐटिटूड डेवेलोप हो चूका हैं। अच्छी बात ये हैं की वहां पर मशीनो ने मैट्रिक्स फिल्म की तरह इंसानो पे कब्ज़ा नहीं किया।  


इंसान बर्बाद होने के लिए आत्मनिर्भर होते हैं।  चाहे वह मिल्कीवे हो या स्टार वार्स वाली गैलेक्सी। 


लेकिन उस गैलेक्सी का विकास बहुत से मामलो में सिमित रह गया हैं।   


हैरानी की बात यह हैं की वहां पर लोग अभी भी सिक्को और चिल्लर में लेनदेन करते हैं। नोट चलता ही नहीं वहाँ। वहां के लोग RBI गवर्नर की गारंटी वाली हस्ताक्षर (कि मैं धारक को फला रुपया अदा करने का वचन देता हूँ) पर भरोसा ही नहीं करते। 


मगर इसका एक उजला पहलु भी हैं। वहां पे साइबर क्राइम शुन्य हैं। जब इंटरनेट ही नहीं हैं, तो साइबर क्राइम कैसे होगा। ब्लॉकचैन और क्रिप्टोकोर्रेंसी क्या होती हैं कैसे पता चलेगा। बिटकॉइन तो दूर की बात हैं; UPI इंटरनेट बैंकिंग और मोबाइल वॉलेट जैसे पेटम का तो उनको कुछ आईडिया भी नहीं हैं।  


इसीलिए चंद सिक्को के लिए वहां के अपराधी सोफिस्टिकेटेड वेपन्स एंड टैक्टिस का प्रयोग करते हैं। हाँ चंद सिक्को के लिए; पोटली भर भर के सिक्के देने पड़ते हैं वहां म्यूच्यूअल फण्ड खरीदते वक्त।


अभी भी वहां इंटरनेट का विकास नहीं हुआ। मगर एक प्लेनेट से दूसरे प्लेनेट वीडियो कॉल जरूर चला जाता हैं।  

और, सोफिस्टिकेटेड वेपन से ध्यान आया की उस सभ्यता के महानतम JEDI योद्धा टुबलाइट जैसी तलवार का बढ़ चढ़ कर इस्तेमाल करते हैं। यह तलवार सभी को नहीं मिलती।  इस तलवार का हक़दार होने के लिए UPSC से ज्यादा टैलेंट चाहिए होता हैं। लेकिन दिलचस्प बात यह हैं कि इस टैलेंट की पहचान परीक्षाओ के नोटिफिकेशन, कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट का प्रीलिम्स और मेन्स, के ज़रिये नहीं होती। एक छोटा सा ब्लड टेस्ट और फिर सीधा इंटरव्यू के जरिये प्रत्याशियों का मूल्याङ्कन हो जाता हैं। 

उनकी बायो टेक्नोलॉजी बेमिसाल हैं! 



और, 

टुबलाइट वाली तलवार वातावरण से मछरों को भी मार भगाती हैं। इसलिए वहां पर डेंगू का उन्मूलन हो चूका हैं।

एक बहुत ही महत्वपूर्ण अटपटी बात मुझे यह लगी की वहां धर्म के प्रचार और विस्तार की कोई होड़ नहीं हैं। समझ में नहीं आता कि धरम का विस्तार कोई मुद्दा नहीं हैं; फिर भी वहां इतनी अराजकता कैसे फैली हुई हैं।  


अपने जीवन काल में महान धर्मगुरु योडा ने कभी भी इस बात का आह्वान नहीं किया की जेडी खतरे में हैं। 


उन लोगों को अराजकता फ़ैलाने का मोटिवेशन फिर कहाँ से आता हैं ? बिना किसी शेयर्ड इमेजिनेशन के वर्चस्व की लड़ाई के लिए प्रेरणा, आखिर कहाँ से और कैसे मिलती हैं? मेरे लिए ये एक रहस्य हैं।   


इधर देखो, हम अभी तक चाँद पे ढंग से पैर नहीं जमा पाए, और मंगल तक इक्का दुक्का रोबोट ही उतार पाए हैं। लेकिन फिर भी हमने वहां पर मंगल मूर्ति के मंदिर की स्थापना का संकल्प ले लिया हैं।  


भगवान और अध्यात्म के प्रति कोई रूचि ही नहीं हैं।  उन लोगों का वैचारिक पिछड़ापन इस बात से झलकता हैं कि उन लोगों ने यह सोचने का प्रयास ही नहीं किया कभी - कि उनको बनाया किसने, उनको किसकी पूजा करनी चाहिए।  


उन लोगों को धर्म और अध्यात्म का ज्ञान नहीं हैं, इसलिए उनके प्रकाश गति से यात्रा करने का भी कोई मूल्य नहीं। 


लेकिन, 


धर्म के प्रति ज्ञान न होना से बड़ी समस्या वहां के युवाओ की सरकारी नौकरी के प्रति उदासीनता हैं। ब्रह्मांड के उस कोने में भी बेरोजगारी एक गंभीर समस्या हैं। बुक ऑफ बोबा फेट के तीसरे अध्याय में इस अव्यवस्था पर प्रकाश डाला गया हैं। 


इधर हमारी उपलब्धि देखों; 


हमारे भारतीय समाज के युवा जो सरकारी नौकरी को आदर्श व्यवसाय मानते हैं। वही स्टार वार्स की दुनिया के युवाओ के सोच का केंद्र बिंदु ही सरकार से विद्रोह हैं। 


डिस्टोपियन सोसाइटी में आपको और क्या मिलेगा? 


नेतृत्व के प्रति समर्पण और भक्ति भाव भारतीय संस्कृति का पर्याय हैं। नेतृत्व और गुरु से सवाल न पूछना हमारा संस्कार, परंपरा, प्रतिष्ठा और अनुशाशन हैं। तथा सरकारी नौकरी ही सर्वोत्तम व्यवसाय हैं! यह हमारा यूटोपिया हैं! 



असंख्य प्रकाश वर्ष दूर उस आकाश गंगा के निवासी क्या समझेंगे हमारे मूल्यों और आदर्शो को! 


उन्हें वैसे भी अपनी अराजकता से फुर्सत नहीं मिल पायेगा।  


जागरूकता की कमी का मुख्य कारण सहज इंटरनेट का नहीं होना हैं।  इंटरनेट के माध्यम से हम चिकित्सा से लेकर ज्योतिष और टोटको तक का ज्ञान हासिल कर लेते हैं।  इंटरनेट नहीं होने की वजह से वहां के युवा कनेक्टेड और इंटीग्रेटेड नहीं हैं। 


और इंटरनेट नहीं होने की वजह से वहां के युवाओं को SSC, UPSC, RRB, सरीखी परीक्षाओं का नोटिफिकेशन भी नही मिल पाता। न्यूज़ चैनल, Netflix, Facebook, टिक-टोक और Instagram reels कि जागरूकता नही होने की वजह से time pass नहीं कर पाना भी एक व्यापक समस्या हैं। 


दशकों से सिविल वॉर जैसी स्थिति और आर्थिक मोर्चे पर विकास की कमी के बावजूद वहां के समाज का एक सराहनीय पहलु भी हैं। 



उनकी संस्कृति हेलमेट प्रधान संस्कृति हैं। 



वहां के लोग अपनी हैसियत और मूड के हिसाब से हेलमेट का उपयोग करते हैं। हेलमेट पहनने को लेकर उन्हें किसी भी बात का संकोच नहीं होता। पुरुष और महिलाएं सभी हेलमेट का सदुपयोग करते हैं। 



दुकानदार से हेलमेट खरीदते वक्त ग्राहक बेझिजक मोल भाव भी करते हैं। वह अपने हेलमेट को अपने शरीर का ही एक अभिन्न हिस्सा मानते हैं। 


उनके कारखानों में उम्दा किस्म के हेलमेट का निर्माण भी होता हैं। उनके हेलमेट मजबूत और फ्लेक्सिबल होते हैं। हेलमेट से कुछ भी आर का पार नहीं होता।  उनके लिए हेलमेट आदर्श और गर्व की विषय वस्तु हैं। हेलमेट का कवच उनकी रक्षा करता हैं और वे हेलमेट की सुरक्षा करते हैं।  



स्टार वार्स की कहानिया और किरदार प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए अगर आप एंड्राइड फ़ोन का इस्तेमाल करते हो तो एंड्राइड के लोगो को ध्यान से देखें। एंड्राइड के लोगो का डिज़ाइन स्टार वार्स के किरदार R2-D2 से प्रभावित हैं।      


स्टार वार्स का मैं एक सच्चा प्रशंशक हूँ।  सच्चा प्रशंशक होने के नाते मैं उम्मीद करता हूँ की आप भी इस महा गाथा का आनंद उठाएंगे और अपने अनुभव मुझसे साझा करेंगे।  

May the force be with you! 

- फ़्रीवास्तवजी   

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